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पत्र: अखबारोंको

उन सज्जनोंसे कहना चाहिए कि वे जो भी कानून पास करते हैं, यदि वे ईश्वरीय कानून नहीं हैं, तो हमारे लिए नहीं हैं। हम कमर कस लें और काम करें। बातोंमें या अन्यथा अपनी शक्ति नष्ट न करें। मुझे दुःख है कि हममें कुछ लोगोंने कानून स्वीकार करके अपनी गम्भीर प्रतिज्ञा तोड़ दी है। किन्तु हम अब भी अपना कदम वापस लेकर सही काम कर सकते हैं। गांधीजीने आगे कहा कि कल अनेक प्रमुख भारतीय रिहा किये जायेंगे | आप उनका उचित स्वागत करें। उन्होंने लोगोंको सभामें आने के लिए धन्यवाद दिया और ईश्वरसे प्रार्थना की कि वह उन्हें उनके सामने मौजूद असली कामको करनेकी शक्ति दे।[१]

[अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-५-१९०९

१४६. पत्र: अखबारोंको

[२]

जोहानिसबर्ग
मई २६, १९०९

महोदय, मेरे पिछले कारावासके दिनोंमें मेरे साथ किये गये व्यवहारके सम्बन्धमें बहुत चर्चा हुई है। इसलिए यदि आप निम्न वक्तव्य प्रकाशित कर दें तो मैं आपका कृतज्ञ होऊँगा । जब मुझे फोक्सरस्टमें तीन महीनेकी कड़ी कैदकी सजा दी गई और मैं वहाँकी जेलमें ले जाया गया, तो मैंने देखा कि वहाँ, मेरे पुत्रको मिलाकर, मेरे पचाससे ज्यादा साथी-कार्यकर्ता मौजूद हैं। यह अपने-आपमें ही मेरे लिए बड़ी सुखद बात थी । जो खाना दिया जाता था, वह अच्छा और साफ होता था। उसमें प्रतिदिन एक औंस घी होता था । खाना भारतीय रसोइये पकाते थे। सब भारतीय कैदी वतनियोंसे बिल्कुल अलग रखे जाते थे और उनके पाखाने और स्नानागार आदि भी अलग होते थे । जो कोठरियोंमें रहते थे, उनके पास मामूली तौरपर जो कम्बल वगैरह दिये जाते हैं उनके अलावा तख्त होते थे और हरएकको एक तकिया दिया जाता था । काम बाहर खुलेमें करना होता था और हममें से तीसके लगभग सड़ककी मरम्मत या स्कूलके मैदानमें घासपातकी सफाई करते थे। जहाँतक मेरा सम्बन्ध था, ये दोनों ही कार्य बहुत अनुकूल और स्वास्थ्यप्रद थे। मुझे गत २५ फरवरीको सजा दी गई थी।

  1. सभामें इसके बाद रेवरेंड जे० जे० डोक और तमिल कल्याण सभा (तमिल बेनीफिट सोसायटी ) के अध्यक्ष श्री चेट्टियारने भाषण दिया |
  2. यह पत्र, जो ट्रान्सवालके सभी अखबारोंके लिए लिखा गया था, इंडियन ओपिनियन में "प्रिटोरिया जेलमें श्री गांधी के अनुभव " शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था ।