पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

" तनहाई "

मार्च २ को मुझे प्रिटोरिया ले जानेकी आज्ञा दी गई। मुझे तीसरे दर्जेके डिब्बेमें यात्रा करनी पड़ी थी और चूंकि यात्रा अधिकांश रातको की गई, इसलिए स्वभावतः ही सर्दी थी । स्पष्ट ही कैदियोंको [ रास्तेके लिए] कम्बल नहीं दिये जाते। इस कारण और भी सर्दी लगी । ३ मार्चको प्रिटोरिया पहुँचनेपर मामूली रस्मी कार्रवाइयाँ पूरी होनेके बाद मुझे एक कोठरीमें बन्द कर दिया गया। मेरा खयाल हैं, पाँच दिनतक, सिवा उस वक्त जब मुझे नहाने और ऐसे ही दूसरे कार्योंके लिए बाहर जाने दिया जाता था, मुझे सारा वक्त कोठरीमें या गलियारेमें ही बिताना पड़ा। मेरी कोठरीके किवाड़ोंपर लिखा था "तनहाई" (आइसोलेटेड) और मैंने देखा भी कि मुझे और दूसरे चार कैदियोंको तनहाईमें रखा जाता है। इनमें से एकको हत्याका प्रयत्न करनेपर, दोको अप्राकृतिक व्यभिचार करनेपर और एकको अश्लील व्यवहार करनेपर सजाएँ दी गई थीं। यहाँ कोई तकिया या तख्त नहीं दिया गया और खानेके लिए बुधवार और रविवारको छोड़कर दूसरे दिन घी बिल्कुल नहीं दिया जाता था । मुझे अपनी कोठरीके फर्शकी और जिस हिस्सेमें मुझे तथा वतनी कैदियोंको रखा गया था उसके गलियारेमें कोठरियोंके किवाड़ोंकी पालिश करनेका काम दिया गया था। इन्हीं दिनों श्री लिखटैन्स्टाइन[१] मुझसे मिले और मैंने उनसे कहा कि मैं इस व्यवहारको पाशविक मानता हूँ, और स्पष्टत: जनरल स्मट्सका इरादा मुझे झुकानेका है, लेकिन मैं झुकनेवाला नहीं हूँ । बादमें, मुझे दिनमें दो बार आध-आध घंटा व्यायाम कराया जाने लगा और अपने पहले कामोंके बदले कम्बल सीनेका और ऐसा ही दर्जीगीरीका दूसरा काम मिलने लगा ।

दिनमें एक बार भोजन

मैं लगभग जलपानके बिना ही रहता था, क्योंकि मकईका दलिया मेरी रुचिके लायक काफी पकाया नहीं जाता था। मैंने इसके सम्बन्धमें कोई शिकायत नहीं की, क्योंकि मैं देखता था कि दूसरे सब कैदी दलिया स्वादसे खाते थे। मैं शामको कुछ नहीं खाता था, क्योंकि जो चावल दिया जाता था उसमें घी नहीं होता था। मैंने धीके अभावकी शिकायत मुख्य वार्डरसे की; किन्तु उसने असमर्थता बताई, क्योंकि नियमों में भारतीय कैदियोंको घी देनेकी व्यवस्था नहीं थी । यहाँ मैं इतना कह दूं कि सब वतनी कैदियोंको प्रतिदिन एक-एक औंस चर्बी दी जाती है। बादमें मैं चिकित्सा अधिकारीके पास गया और अनुरोध किया कि भारतीयोंकी भोजन- तालिकामें प्रतिदिन एक औंस घी होना चाहिए। वह परिवर्तन करना नहीं चाहता था, किन्तु उसने मेरे लिए खास तौरपर चावलके साथ ८ औंस रोटी देनेकी आज्ञा दे दी। मैंने उससे कहा कि मैं इसके लिए आभारी हूँ, फिर भी मैं इस विशेष अधिकारको तबतक स्वीकार नहीं कर सकता, जबतक सब भारतीय कैदियोंको घी नहीं दिया जाता; क्योंकि मैं इसको उनके स्वास्थ्यके लिए नितान्त आवश्यक समझता हूँ। इसके बाद मैंने यह मामला जेल-निदेशकके[२] सामने पेश किया।[३] पन्द्रह दिन बाद आज्ञा दे दी गई कि मुझे चावलके साथ एक औंस घी दिया जाय। यह खयाल करते हुए कि यह आज्ञा सबके लिए है, मैंने घी एक दिन लिया। किन्तु जब मैंने देखा कि यह तो केवल मेरे लिए रियायत है, तब मैं विवश होकर पहली ही

  1. वकील और गांधीजीके सह-व्यवसायी
  2. डायरेक्टर ऑफ प्रिजन्स ।
  3. देखिए " मसविदा जेलके गवर्नरको लिखे प्रार्थनापत्रका", पृष्ठ २०३-४ ।