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मेरा जेलका तीसरा अनुभव [१]

इस प्रकार, सत्याग्रही कौन हो सकता है, इसका विचार करते हुए यह परिणाम निकलता है कि जिसकी धर्ममें दीन में सच्ची आस्था है, वही सत्याग्रही हो सकता है; "मुखमें राम, बगलमें छुरी "[१] -जैसी आस्थावाला नहीं। दीनका नाम लेकर दीनके खिलाफ काम करना दीन नहीं है। जो धर्म, दीन और ईमानकी रक्षा उचित प्रकारसे करता है वहीं सत्याग्रही हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि जो मनुष्य सब-कुछ खुदा या ईश्वरपर ही छोड़ देता है, उसको संसारमें कभी हारना ही नहीं पड़ता। लोग हारा हुआ कहें, उससे वह हारा हुआ नहीं माना जायेगा। लोग उसे जीता हुआ मानें, तो उसमें उसकी जीत भी नहीं है । इसको जो जानता है, वही जानता है ।

यह सत्याग्रहका सच्चा रूप है। इसको एक हद तक ट्रान्सवालके भारतीयोंने जाना है। उन्होंने इसको जानकर इसका कुछ पालन भी किया है। इतनेसे ही हम इसके अमूल्य रसका आस्वादन कर सके हैं। जिसने सत्याग्रहकी खातिर अपने सर्वस्वका त्याग किया है, उसने सब-कुछ पा लिया है, क्योंकि वह सन्तोष मानता है, और सन्तोष सुख है। इसके सिवा दूसरा सुख किसने जाना है ? दूसरा सुख तो मृगजलके समान है। ज्यों-ज्यों हम उसकी ओर बढ़ते हैं त्यों-त्यों वह दूर होता जाता है ।

हम चाहते हैं कि ऐसा सोचकर हरएक भारतीय सत्याग्रही बने। यह हथियार हाथ लग जायेगा तो अन्याय-जनित सभी दुःखोंको दूर करनेमें काम जायेगा। यह यहाँ ही नहीं, बल्कि अपने देशमें भी बहुत उपयोगी है। केवल इसका ठीक स्वरूप समझ लेना चाहिए। उसको समझना जैसा सहज है, वैसा ही कठिन भी है। शरीरके बली भी थोड़े होते हैं, फिर सत्यके बली तो उनसे भी कम होते हैं ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-५-१९०९

१४८. मेरा जेलका तीसरा अनुभव [१]

फोक्सरस्ट

जब २५ फरवरीको मुझे तीन माहकी सख्त कैदकी सजा हुई और मैं फोक्सरस्टकी जलमें अपने कैदी भाइयों और लड़केसे मिला, तब मैंने यह नहीं सोचा था कि इस तीसरी जेलयात्राके विषयमें मेरे पास कुछ अधिक कहने या लिखने-जैसा होगा। लेकिन मेरी यह धारणा मनुष्यकी अनेक अन्य धारणाओंकी तरह ही झूठी सिद्ध हुई है। इस बार मुझे जो अनुभव मिला है, वह कुछ दूसरे ही प्रकारका है। उससे मैंने जितना सीखा है, उतना वर्षोंके अभ्याससे भी नहीं सीख सकता था। इन तीन महीनोंको मैं अमूल्य गिनता हूँ। इस स्वल्प अवधिमें सत्याग्रहके अनेक जीवन्त उदाहरण मेरे सामने आये, और मैं मानता हूँ, तीन १. गांधीजीने मूल गुजराती लेखमें इस हिन्दी कहावतका ही उपयोग किया है ।

  1. गांधीजीने मूल गुजराती लेखमें इस हिन्दी कहावतका ही उपयोग किया है ।