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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

माह पहले मैं जितना बलवान सत्याग्रही था उसकी अपेक्षा आज अधिक बलवान हो गया हूँ। इस सारे लाभके लिए मुझे यहाँकी (ट्रान्सवालकी) सरकारका उपकार मानना चाहिए ।

कुछ अधिकारियोंने यह ठान ली थी कि इस बार मुझे छ: माससे कमकी सजा न मिले। मेरे साथी जिनमें अनेक बुजुर्ग और प्रसिद्ध भारतीय हैं -- और मेरा लड़का, ये सब छः-छ: माहकी सजा भोग रहे थे। इसलिए मैं यह चाहता था कि अधिकारियोंकी यह आशा पूरी हो तो अच्छा। लेकिन मेरे ऊपर जो आरोप लगाया गया था, वह कानूनकी धारा- विशेषके[१] अनुसार लगाया गया था; इसलिए मुझे डर था कि ज्यादासे-ज्यादा माहकी ही सजा होगी। और हुआ भी ऐसा ही । मुझे तीन

जेल पहुँचकर श्री दाउद मुहम्मद, श्री रुस्तमजी, श्री सोराबजी, श्री पिल्ले, श्री हजूरा- सिंह, श्री लालबहादुर सिंह, आदि सत्याग्रही योद्धाओंसे मैं अत्यन्त हर्षपूर्वक मिला। दस-एक लोगोंको छोड़कर बाकी सबके सोनेकी व्यवस्था जेलके मैदानमें खड़े किये गये तम्बुओंमें की गई थी। इसलिए सारा दृश्य जेलके बजाय लड़ाईकी छावनी-जैसा लगता था । तम्बूमें सोना सबको पसन्द था । खाने-पीनेका सुख था। रसोई पहलेकी तरह हमारे ही हाथमें थी। उसमें मनचाहे ढंगसे खाना बनता था। सब मिलकर ७७ (सत्याग्रही) कँदी थे ।

जिन कैदियोंको काम करनेके लिए बाहर ले जाते थे, उनका काम थोड़ा कठिन था । उन्हें मजिस्ट्रेटकी कचहरीके सामनेकी सड़क तैयार करनी थी। उसके लिए पत्थर खोदने पड़ते थे, उनके छोटे-छोटे टुकड़े करने पड़ते थे और बादमें उन्हें जहाँ सड़क बन रही थी वहां तक ले जाना पड़ता था। यह काम खत्म होनेके बाद स्कूलके मैदानमें घास खोदनी पड़ती थी। लेकिन अधिकांशतः यह काम सब लोग मजेसे करते थे ।

इस तरह तीन-एक दिन मैं भी इन टुकड़ियोंके साथ गया । इस बीच (सरकारका) तार आया कि मुझे काम करनेके लिए बाहर न भेजा जाये। मैं निराश हुआ, क्योंकि मुझे बाहर जाना पसन्द था। उसमें मेरी तबीयत सुधरती थी और शरीर कसता था । साधारणत: मैं हमेशा दिनमें दो बार ही खाता हूँ। फोक्सरस्ट जेलमें इस कसरतके कारण शरीर दोकी जगह तीन बार खाना माँगता था। अब मुझे झाड़ू लगानेका काम मिला। ऐसा मालूम पड़ा कि इसमें दिन कटेगा नहीं। और इतने में ही यह काम भी हाथसे चले जानेका प्रसंग आ गया ।

मुझे फोक्सरस्टसे अलग क्यों किया गया ?

मार्चकी दूसरी तारीखको खबर मिली कि मुझे प्रिटोरिया भेज देनेका हुक्म हुआ है। उसी दिन मुझे तैयार किया गया। वर्षा हो रही थी, रास्ता खराब था; ऐसे समय अपना गट्ठर उठाकर मुझे और मेरे सन्तरीको जाना पड़ा। शामकी ही गाड़ीमें तीसरे दर्जेके डिब्बे में मुझे ले जाया गया ।

इसपर कुछ लोगोंने अनुमान लगाया कि शायद सरकारके साथ समझौता होनेवाला है। कुछने ऐसा सोचा कि मुझे दूसरे जेलवासियोंसे अलग करके ज्यादा तकलीफ देनेका इरादा होगा। और कुछको ऐसा लगा कि ब्रिटेनकी लोकसभामें चर्चा न हो, इसलिए सरकार मुझे प्रिटोरियामें रखकर शायद ज्यादा आजादी और ज्यादा सुविधाएँ देना चाहती है।

  1. गांधीजीपर भी यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने पंजीयन-प्रमाणपत्र ( रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) दिखानेसे इनकार किया और अँगुलियोंके निशान या शिनाख्त के अन्य प्रमाण नहीं दिये । देखिए पृष्ठ १९६-९७.