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मेरा जेलका तीसरा अनुभव [१]

फोक्सरस्ट छोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा। वहाँ जिस तरह हम अपना दिन आनन्दमें बिताते थे, उसी तरह रातमें भी अच्छी बातें करके खुश हुआ करते थे। श्री हजूरासिंह तथा श्री जोशी, ये दो खासकर बहुत सवाल-जवाब करते थे; और उनके प्रश्न निरर्थक नहीं होते थे, बल्कि ज्ञानवार्ताकी कोटिके होते थे। जहाँ ऐसी स्थिति थी और जहाँ भारतीय कैदी बहुत बड़ी संख्या में रह रहे थे, वहाँसे जाना किस सत्याग्रहीको अच्छा लगता ।

लेकिन मनुष्य जो सोचे वही हो जाये, तो वह मनुष्य न रहे। इसलिए मुझे वहाँसे जाना ही पड़ा। रास्तेमें श्री काजीसे सलाम-बन्दगी हुई। एक डिब्बेमें सन्तरी और मैं दोनों बैठे। ठंड पड़ रही थी । वर्षा रात-भर होती रही । मेरा झाझ[१] मेरे साथ था; सन्तरीने उसे पहननेकी अनुमति दे दी। उससे कुछ ठीक हुआ। मेरे खानेके लिए साथमें डबलरोटी तथा पनीर बाँध दिया गया था। लेकिन मैं तो खाकर निकला था, इसलिए मैंने उसे नहीं छुआ । उसका उपयोग सन्तरीने किया ।

प्रिटोरिया जेल में

तीसरी तारीखको मैं प्रिटोरिया पहुँचा। सब-कुछ नया मालूम हुआ। यह जेल भी नई बनाई गई है। आदमी सब नये थे। मुझे खानेके लिए कहा गया, पर खानेकी इच्छा नहीं थी। मुझे मकईकी लपसी (मीलीमील पॉरिज) दी गई। उसका एक चम्मच चखकर मैने छोड़ दिया। सन्तरीको आश्चर्य हुआ। मैंने कहा, मुझे भूख नहीं है। वह हँसा । फिर मैं एक दूसरे सन्तरीके हाथमें गया। वह बोला, "गांधी, टोपी उतारो।" मैंने टोपी उतारी। बादमें उसने मुझसे कहा, क्या तुम गांधीके लड़के हो ? " मैंने कहा, "नहीं, मेरा लड़का तो फोक्सरस्टमें छः माहकी कैदकी सजा भोग रहा है। " बादमें मुझे एक कोठरीमें बन्द कर दिया गया। मैंने उसमें घूमना शुरू किया। कुछ ही देरमें कैदियोंको देखनेके लिए दरवाजेमें जो सूराख होता है, उसमें से सन्तरीने मुझे चलते देखा और वह बोल उठा, "गांधी, घूमना बन्द करो; उससे मेरा फर्श खराब होता है।" मैंने घूमना बन्द कर दिया और एक कोनेमें खड़ा हो गया। मेरे पास पढ़नेके लिए भी कुछ नहीं था। अभी मेरी पुस्तकें मुझे मिली नहीं थीं। मुझे आठ बजे बन्द किया गया होगा। दस बजे डॉक्टरके पास ले जाया गया । डॉक्टरने मुझसे पूछा कि तुम्हें कोई छूतका रोग तो नहीं है; और छुट्टी दे दी। बादमें मैं फिर बन्द कर दिया गया। ग्यारह बजे मुझे एक दूसरी छोटी कोठरीमें ले जाया गया। उसीमें मैंने अपना सारा समय बिताया। ऐसी कोठरियाँ एक-एक कैदीको रखनेके लिए बनाई गई हैं। मेरा खयाल है कि उसकी लम्बाई-चौड़ाई १०×७ फुट रही होगी। फर्श काले डामरका । सन्तरी लोग उसे दमकता हुआ रखनेकी कोशिशमें लगे रहते हैं। उसमें हवा और उजालेके लिए काँच और लोहेकी छड़ोंकी एक बहुत ही मोटी खिड़की होती है। कैदियोंको रातके समय देखनेके लिए बिजलीकी बत्ती होती है। वह बत्ती कैदियोंकी सुविधाके लिए नहीं होती, क्योंकि उसका उजाला इतना नहीं होता कि उसमें पढ़ा जा सके । बत्तीके पास जाकर खड़े होनेपर भी मैं मोटे अक्षरोंवाली किताब ही पढ़ सकता था । बत्ती बराबर आठ बजे बुझा दी जाती है। लेकिन रातके समय पाँच या छः बार फिर जलाकर सन्तरी कैदियोंको उस सूराखसे देख जाते हैं ।

  1. ओवरकोट ।