पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३१
मेरा जेलका तीसरा अनुभव [१]

खुराक

खुराकका भी यही हाल था । सवेरे पूपू [ मकईका दलिया ] दिया जाता था; दोपहरको तीन दिन पूपू और आलू अथवा गाजर, तीन दिन सेमकी दाल; और शामको चावल, जिसमें घी नहीं दिया जाता था; बुधवारको दोपहरमें सेम तथा चावल और घी; और रविवारको पूपूके साथ चावल तथा घी मिलता था। घीके बिना चावल खानेमें कठिनाई होती थी। जबतक घी न मिले तबतक चावल न खानेका मैंने निश्चय किया। सवेरेका और उसी तरह दोपहरका पूपू कभी कच्चा तो कभी लपटा-जैसा होता था। सेमकी दाल कभी-कभी कच्ची होती थी । साधारणतः सेम ठीक पकाई जाती थी। जिस दिन शाक मिलता उस दिन छोटे-छोटे चार आलू दिये जाते थे; उनका वजन आठ औंस माना जाता था। और जिस दिन गाजर देना होता, उस दिन गिनी-गिनाई तीन गाजरें मिलतीं; वे भी छोटी होती थीं। किसी-किसी दिन सुबह चार-पाँच चम्मच पूपू मैं ले लेता था। लेकिन सामान्यतः मैंने डेढ़ माह सिर्फ दोपहरकी सेमपर काटा। इसमें फोक्सरस्टके हमारे जेलवासी भाइयोंके जानने योग्य एक बात यह है कि हम अपने रसोइयोंपर कुछ कच्चा या कम रह जानेपर जो नाराज होते थे वह ठीक नहीं था। हमारे ही कोई भाई रसोई करते हों, उस समय तो हमारी नाराजी काम दे सकती थी। लेकिन उपर्युक्त स्थितिमें क्या हो सकता था ? बेशक, यहाँ भी नाराजी प्रकट की जा सकती है, लेकिन इस सम्बन्धमें शिकायतें करना हमें शोभा नहीं देता । जहाँ सैकड़ों कैदी सन्तोष मानकर बैठे हों वहाँ शिकायत कैसी ? शिकायतका हेतु एक ही होना चाहिए : उससे दूसरे कैदियोंको भी राहत मिलनी चाहिए। मैं कभी-कभी सन्तरीसे कहता कि आलू थोड़े हैं, तब वह मेरे लिए और ला देता था। लेकिन इससे क्या फायदा होनेवाला था? एक बार मैंने देखा कि वह तो मुझे दूसरेके कटोरेमें से आलू लाकर देता है। इसलिए मैंने यह बात कहना ही छोड़ दिया ।

शामको चावलमें घी नहीं मिलता, यह बात मुझे पहलेसे ही मालूम थी और मैंने इसका इलाज करनेका भी निश्चय कर लिया था। यह बात मैंने बड़े दारोगासे कही। उसने कहा कि घी तो सिर्फ बुधवार तथा रविवारको गोश्तके बदलेमें मिलेगा। यदि मैं ज्यादा बार घी लेना चाहूँ तो डॉक्टरसे मिलूँ। दूसरे दिन मैंने डॉक्टरसे मिलनेकी प्रार्थना की। मुझे उसके पास ले जाया गया ।

डॉक्टरके सामने मैंने सब भारतीय कैदियोंके लिए चरबीकी जगह घी देनेकी माँग की। बड़ा दारोगा वहाँ हाजिर था। उसने कहा, “गांधीकी माँग उचित नहीं है। आजतक लगभग सब भारतीय कैदियोंने चरबी खाई है और गोश्त भी खाया है। जो लोग चरबी नहीं लेते उन्हें अब सूखा चावल मिलता है और वे सब खुशीसे खाते हैं। जब यहाँ सत्याग्रही कैदी थे तब वे भी खाते थे । जेलमें वे दाखिल हुए, उस समय उनका वजन लिया गया था और जब उन्हें छोड़ा गया तब भी लिया गया था। उन सबका वजन उस समय बढ़ा हुआ पाया गया था । " डॉक्टरने पूछा, “बोलो, अब तुम्हें क्या कहना है ? " मैंने कहा, यह बात मेरे गले नहीं उतरती। अपने विषयमें तो मैं कह सकता हूँ कि यदि मुझे बिल्कुल घीके बिना रहना पड़ा तो मेरी तबीयत जरूर बिगड़ेगी। डॉक्टर बोला, “तो तुम्हारे लिए मैं रोटीका हुक्म करता हूँ। " मैंने कहा, "मैं आपका उपकार मानता हूँ। लेकिन यह प्रार्थना मैंने खास अपने लिए नहीं की है। जबतक सब लोगोंके लिए घीका हुक्म नहीं मिलता, तबतक मैं रोटी नहीं ले सकता। इसपर डॉक्टरने कहा, 'अब तुम मुझे दोष न देना ।