पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अब क्या किया जाये ? बड़ा दारोगा आड़े न आता तो घीका हुक्म हो जाता। उसी दिन मेरे सामने रोटी और चावल रखा गया । मैं भूखा था। लेकिन सत्याग्रही इस तरह रोटी कैसे खा सकता था ? इसलिए मैंने ये दोनों ही वस्तुएँ नहीं खाईं। दूसरे दिन जेल निदेशक (डायरेक्टर) को[१] अर्जी देनेका हुक्म माँगा और वह मिल भी गया। अर्जीमें मैंने जोहानिसबर्ग और फोक्सरस्टके उदाहरण देकर सब कैदियोंके लिए घीकी माँग की। इस अर्जीका जवाब पन्द्रह दिनमें मिला। जवाब यह था कि जबतक भारतीय कैदियोंके लिए दूसरे प्रकारकी खुराकका निर्णय न हो जाये, तबतक मुझे हर रोज चावलके साथ घी दिया जाये। मुझे इसका पता नहीं था कि यह हुक्म सिर्फ मेरे ही लिए हुआ है, इसलिए पहले दिन मैंने चावल, घी तथा रोटी खुश होकर खाई। परन्तु मैंने कहा कि मुझे रोटीकी जरूरत नहीं है। लेकिन मुझे जवाब दिया गया कि डॉक्टरका हुक्म है, इसलिए वह तो मिलेगी ही। इसलिए रोटी भी मैंने पन्द्रह दिन तक खाई।[२] लेकिन मेरी खुशी एक ही दिन टिकी। दूसरे दिन मुझे मालूम हुआ कि हुक्म तो ऊपर लिखे अनुसार है, इसलिए मैंने फिर चावल, घी और रोटी लेनेसे इनकार कर दिया। बड़े दारोगासे मैंने कहा कि जबतक सब भारतीयोंको मेरी तरह घी नहीं मिलता तबतक मैं घी नहीं ले सकता । डिपुटी गवर्नरने, जो साथमें ही था, कहा, "यह तो तुम्हारी मर्जीपर निर्भर है"

मैंने निदेशकको फिर लिखा। मुझे बताया गया था कि खुराक अन्तमें नेटालकी जेलों-जैसी कर दी जायेगी। मैंने इस बातकी आलोचना की और स्वयं घी न लेनेके कारण बताये । अन्तमें सब मिलाकर डेढ़ माहसे ज्यादा समय बीतनेपर मुझे सूचित किया गया कि जहाँ-जहाँ भारतीय कैदी अधिक संख्यामें होंगे वहाँ-वहाँ उन्हें घी दिया जायेगा। इस तरह यह लड़ाई शुरू करनेके डेढ़ माह बाद मेरा उपवास (रोजा) टूटा, ऐसा कहूँ तो गलत नहीं होगा । मैने लगभग अन्तिम एक मास चावल, घी और रोटीवाली खुराक ली, लेकिन सुबहका खाना बन्द कर दिया। इसी तरह चावल और रोटी लेना शुरू करनेके बाद दोपहरको जब पुपु आता तब वह भी मैं मुश्किलसे दस चम्मच लेता था, क्योंकि वह हमेशा अलग-अलग ढंगसे पकाया हुआ होता था। फिर भी, रोटी और घीका सहारा पर्याप्त था, इसलिए मेरी तबीयत सुधर गई ।

मैंने ऊपर कहा है कि मेरी तबीयत सुधर गई। बात यह हुई कि जब मैंने एक ही जून खाना शुरू किया था तब मेरी तबीयत काफी बिगड़ गई थी। मेरी शक्ति चली गई थी और कोई दस दिनों तक मुझे सख्त अधकपारी रही। मेरी छातीमें भी गड़बड़ी होनेके चिह्न मालम होने लगे थे।

काममें परिवर्तन

छातीमें तकलीफ होनेका कारण दूसरा था। मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि मुझे फर्श और दरवाजे साफ करनेका काम सौंपा गया था। यह काम करीब दस दिन करानेके बाद दो-दो फटे हुए कम्बलोंको सीकर जोड़नेका काम मुझे दिया गया । यह काम बारीकी और सावधानीसे करना पड़ता था। सारे दिन पीठ झुकाकर फर्शपर बैठे-बैठे सीना पड़ता था; सो भी कोठरीमें

  1. देखिए “ गवर्नर जनरलके नाम लिखे प्रार्थनापत्रफा मसविदा”, पृष्ठ २०३-४ ।
  2. इस वाक्यका तथ्य अगले वाक्यमें कही गई बातसे मेल नहीं खाता; देखिए "पत्र अखबारोंको ", पृष्ठ २२२-२३ भी ।