पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१५२. मेरा जेलका तीसरा अनुभव [२]

दूसरे परिवर्तन

मैं ऊपर बता चुका हूँ कि मेरे मुख्य वार्डरका व्यवहार कुछ सख्त था। लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिन नहीं रही। जब उसने देखा कि मैं खुराक आदिके बारेमें सरकारसे तो लड़ता हूँ, लेकिन उसके सारे हुक्म बराबर मानता हूँ, तब उसने अपना व्यवहार बदल दिया और मुझे जैसा अनुकूल हो वैसा करनेकी छूट दे दी। यानी पाखाना जाने, नहाने आदिकी मेरी अड़चनें दूर हो गई। इसके सिवा, अब वह मुझे शायद ही ऐसा एहसास होने देता था कि उसका हुक्म मेरे ऊपर चल सकता है। उस वार्डरकी बदलीके बाद जो नया वार्डर आया, वह तो बादशाह था। वह मुझे सब योग्य सुविधाएँ देनेका ध्यान रखता था। वह कहता था कि "जो मनुष्य अपनी कौमके हितके लिए लड़ता है उसे मैं चाहता हूँ। मैं खुद लड़नेवाला हूँ। मैं तुम्हें कैदी नहीं मानता।" इस तरह वह सान्त्वना और हमदर्दीकी अनेक बातें करता था।

फिर, थोड़े दिन बाद मुझे आधा घंटा सुबह और उतने ही समयके लिए शामको जेलके मैदानमें घूमनेके लिए बाहर निकाला जाता था। मेरा यह व्यायाम जब बाहर बैठकर काम करनेकी व्यवस्था शुरू हुई तब भी जारी था। यह नियम उन सब कैदियोंपर लागू होता है, जो अपना काम बैठकर करते हैं।

इसके सिवा, जिस बेंचके बारेमें पहले मुझे नाहीं कर दी गई थी, वह बेंच भी थोड़े दिन बाद चीफ वार्डरने मुझे अपनी ही ओरसे भिजवा दी। बीचमें जनरल स्मट्सकी तरफसे मुझे दो धार्मिक पुस्तकें पढ़नेके लिए मिली थीं। इससे मैंने अनुमान लगाया कि मुझे जो कष्ट सहना पड़ा वह उनकी आज्ञासे नहीं, बल्कि उनकी और दूसरोंकी लापरवाहीके कारण तथा भारतीयोंको काफिरोंके साथ गिननेकी वजहसे। इतना तो साफ समझमें आ गया कि मुझे यहाँ अकेला रखने में हेतु यह था कि किसीके साथ मेरी बातचीत न हो सके। माँग करने और उसके लिए कुछ प्रयत्न करनेके बाद मुझे पेंसिल और नोटबुक रखनेकी इजाजत भी मिल गई।

निदेशकसे मुलाकात

मेरे प्रिटोरिया पहुँचनेके कुछ दिन बाद खास इजाजत लेकर श्री लिखटैन्स्टाइन मुझसे मिलने आये। वे आये तो थे सिर्फ ऑफिसके कामके लिए, लेकिन उन्होंने मुझसे "कैसे हो" आदि सवाल भी किये। इन सवालोंका जवाब देनेकी मेरी इच्छा नहीं थी, लेकिन उन्होंने आग्रहसे पूछा, इसलिए मैंने कहा, "मैं सब बातें तो नहीं कहता, लेकिन इतना कहता कि मेरे साथ क्रूरताका व्यवहार किया जा रहा है। ऐसा करके जनरल स्मट्स मुझे पीछे हटाना चाहते हैं, लेकिन यह तो कभी हो ही नहीं सकता। मुझे जो तकलीफ दी जायेगी, उसे सहनेके लिए मैं तैयार हूँ। मेरा मन शान्त है। इस बातको आप प्रकाशित न कीजिए। बाहर निकलनेके बाद मैं खुद सारी चीज दुनियाके आगे रखूँगा।" श्री लिखटैन्स्टाइनने यह बात