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मेरा जेलका तीसरा अनुभव [२]

श्री पोलकको बताई। श्री पोलक उसे पचा नहीं सके और उन्होंने दूसरोंसे कही। परिणाम यह आया कि डेविड पोलकने लॉर्ड सेल्बोर्नको लिखा और जाँच शुरू हुई। निदेशक (डायरेक्टर) मुझसे मिलने आया; उससे भी मैंने ऊपरके ही शब्द कहे। और इस सिलसिलेमें मैंने आरम्भमें जिन त्रुटियोंका उल्लेख किया है वे त्रुटियाँ भी बताई। फलतः कोई दस दिन बाद मुझे सोनेके लिए तख्त, तकिया, रातके समय पहननेकी कमीज तथा नाक पोंछनेका रूमाल भेज दिये गये, जो मैंने ले लिये। इस सम्बन्धमें मैंने जो वक्तव्य[१] लिख भेजा है, उसमें बताया है कि इन वस्तुओंकी आवश्यकता हरएक भारतीय कैदीको होती है। सच पुछिए तो सोने-बैठने आदिमें गोरोंकी अपेक्षा भारतीय अधिक कोमल होते हैं। उनके लिए तकियेके बिना सोना मुश्किल होता है।

इस तरह खाने और खुली हवामें काम करनेकी सुविधाके साथ ही, जैसा मैंने ऊपर कहा है, सोनेकी सुविधाएँ भी मुझे मिल गई। लेकिन दुर्भाग्यने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। तख्त खटमलोंसे भरा हुआ था। इसलिए उसका करीब दस दिन तक तो मैंने उपयोग ही नहीं किया। बादमें जब मुख्य वार्डरने उसे दुरुस्त कराया तब उसे मैंने काममें लाना शुरू किया। इस बीच मुझे तो जमीनपर कम्बल बिछाकर सोनेकी आदत पड़ गई थी। इसलिए तख्तसे कुछ फर्क पड़ा, ऐसा मालूम नहीं हुआ। तकियेके अभाव में तकियेका काम अपनी पुस्तकोंसे लेने लगा था, इसलिए तकिया मिलनेसे भी कुछ फर्क नहीं पड़ा।

हथकड़ियाँ लगाई गईं

जेल-अधिकारियोंके शुरूके व्यवहारके बारेमें मैंने जो राय बनाई, वह नीचे दी जानेवाली घटनासे पुष्ट हो गई। चार-एक दिन बाद मुझे श्रीमती पिल्लेके मामलेमें गवाही देनेका सम्मन्स मिला। इसलिए मुझे अदालतमें ले जाया गया। उस समय मेरे हाथोंमें हथकड़ियाँ पहनाई गई।[२] और वार्डरने उन्हें बहुत कड़ा कस दिया। मैं मानता हूँ कि यह उसने अनजाने ही किया होगा। चीफ वार्डरने यह देख लिया। उससे मैंने पढ़नेके लिए एक पुस्तक साथमें ले जानेकी इजाजत ले ली थी। उसने सोचा होगा कि हाथोंमें हथकड़ियाँ होनेसे मुझे शरम आयेगी, इसलिए उसने मुझसे यह पुस्तक दोनों हाथोंमें पकड़नेके लिए कहा, ताकि हथकड़ियाँ किसीको दिखाई न दें। इससे मुझे तो हँसी ही आई। हथकड़ियाँ पहननेमें मैंने तो अपना सम्मान ही समझा। मैंने अपने साथ जो पुस्तक ली थी वह संयोगवश 'ईश्वरका राज्य तेरे अन्तरमें है'[३] थी। मैंने मनमें सोचा कि यह भी अच्छा संयोग बना है। बाहरसे मैं किसी भी विपत्तिमें क्यों न पड़ जाऊँ, लेकिन यदि मैं ऐसा रहूँ कि ईश्वर मेरे अन्तरमें निवास करे, तो फिर मुझे दूसरी किसी बातकी परवाह करनेकी जरूरत नहीं है। अदालततक मुझे पैदल ले जाया गया। वापसीमें जेलकी मोटरलारी आई। मैं अदालत जानेवाला हूँ, यह खबर भारतीयोंको लग गई होगी; इसीलिए कुछ भारतीय भाई कचहरीके सामने खड़े थे। उनमें से श्री त्र्यम्बकलाल व्यासने श्रीमती पिल्लेके वकीलकी मार्फत मुझसे मिलनेकी व्यवस्था कर ली।

 
  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. इस विषयपर दफ्तरी पत्र-व्यवहार और अन्य सामग्री के लिए देखिए परिशिष्ट ८।
  3. टॉल्स्टॉयकृत दि किंगडम ऑफ़ गॉड इज़ विदिन यू नामक पुस्तक।