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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


एक बार और मुझे अदालतमें ले जाया गया था। हथकड़ी उस बार भी पहनाई गई थी। आते-जाते दोनों बार खटारे [गाड़ी] का इन्तजाम था।

सत्याग्रहकी बलिहारी

ऊपर मैंने जिन बातोंकी चर्चा की है, उनमें से कुछ नगण्य कही जा सकती हैं। किन्तु उन सबको विस्तारसे देनेका हेतु यह है कि छोटी-बड़ी सब बातोंमें सत्याग्रहका उपयोग हो सकता है। छोटे वार्डरने मुझे जो भी शारीरिक तकलीफ दी, मैंने स्वीकार की। उसका परिणाम यह हुआ कि मेरा मन शान्त रहा। इतना ही नहीं, उन तकलीफोंको फिर उन्हीं लोगोंने दूर भी किया। यदि मैंने विरोध किया होता तो मेरा मनोबल बेकार खर्च हो जाता और मुझे जो बड़े काम करने थे वे न हो सकते तथा वार्डर मेरे शत्रु बन जाते।

खुराकके बारेमें अपनी टेकपर कायम रहनेसे और प्रारम्भमें दुःख सहनेसे वह असुविधा भी दूर हो गई। ऐसा ही दूसरी छोटी-छोटी बातोंमें समझा जा सकता है।

सबसे बड़ा लाभ तो यह हुआ कि शरीरका दुःख सहन करनेसे मैं यह साफ देख सकता हूँ कि मेरा मनोबल बहुत बढ़ा है। मैं मानता हूँ कि गत तीन महीनोंके अनुभवोंसे मुझे बहुत लाभ हुआ है और आज मैं ज्यादा कष्ट आसानीसे उठानेके लिए तैयार हूँ। मुझे ऐसा दिखता है कि सत्याग्रहको हमेशा ईश्वरकी सहायता प्राप्त होती है और सत्याग्रहीकी कसौटी करते हुए भी जगतका स्वामी उसपर उतना ही बोझा डालता है, जितना वह आसानीसे उठा सकता है।

मैंने क्या पढ़ा?

मेरे दुःखकी अथवा सुखकी या सुख और दुःख दोनोंकी कहानी अब पूरी हो गई कही जा सकती है। किन्तु इन तीन महीनोंमें मुझे अनेक लाभ हुए। उनमें से एक यह भी है कि इस अवधिमें मुझे पुस्तकें पढ़नेका अवसर मिला। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि शुरूके दिनोंमें मैं कुछ चिन्तामें पड़ जाता था; दुःखसे ऊब उठता था। बार-बार मैं अपने मनपर अंकुश लगाता था और वह बार-बार बन्दरकी तरह चंचल हो जाता था। ऐसी स्थितिमें आदमी अक्सर पागल-जैसे हो जाते हैं। मेरी पुस्तकोंने मेरी बड़ी रक्षा की। भारतीय भाइयोंके समागमकी कमी बहुत अंशमें पुस्तकोंने पूरी की। मुझे पढ़नेके लिए प्रतिदिन लगभग तीन घंटे मिल जाते थे। एक घंटा सुबह मिलता था। मैं उस समय खाता नहीं था, इसलिए वह बच जाता था। शामको भी ऐसा ही होता था। दोपहरको खाते समय मैं पढ़नेका काम भी करता था। शामको मैं थका न होता, तो बत्ती जलनेके बाद भी पढ़ता था। शनिवार और रविवारको तो बहुत समय मिलता था। इस कालमें मैंने लगभग तीससे ज्यादा पुस्तकें पढ़ीं और उनमें से कुछपर विचार भी किया। ये पुस्तकें अंग्रेजी, हिन्दी, ये गुजराती, संस्कृत और तमिल भाषाओंकी थीं। अंग्रेजी पुस्तकोंमें उल्लेखनीय टॉल्स्टॉय, इमर्सन और कार्लाइलकी थीं। पहली दो धर्म-सम्बन्धी थीं। इनके साथ मैंने 'बाइबिल' भी पढ़ी; वह जेलसे ही ली थी। टॉल्स्टॉयकी रचनाएँ बहुत सरल और सरस हैं और किसी भी धर्मको माननेवाला उन्हें पढ़कर उनसे लाभ उठा सकता है। इसके सिवा, वे उन व्यक्तियोंमें से हैं, जो जैसा कहते हैं, वैसा ही करते भी हैं; इसलिए वे जो-कुछ लिखते या कहते हैं, उसपर हम साधारणत: ज्यादा भरोसा कर सकते हैं।