पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२७८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय उपसंहार मैं चाहता हूँ, जो पाठक यह नहीं जानते कि देश-प्रेम क्या है वे इस अनुभवको पढ़कर उसकी जानकारी प्राप्त करें और सत्याग्रही बनें; और जो देशप्रेमको जानते हैं, वे उसमें दृढ़ बनें । मेरा यह विश्वास अधिकाधिक बढ़ता जाता है कि जिसने अपने धर्मको नहीं जाना है, वह सच्ची देशभक्तिको भी नहीं जान सकता । वैसे तो -- २४२ और - अलख नाम धुनि लगी गगनमें, मगन भया मन मेरा जी; आसन मार सुरत धारी, दिया जी । अगम घर डेरा करना फकीरी क्या दिलगीरी, २ मगन मन रहेना' जी । सदा दुनियामें रहते हुए भी फकीरका जीवन बिताया जा सकता है। अन्तमें, खुदाको - ईश्वरको कैसे जाना जाये, इस प्रश्नके उत्तरमें भक्त कवि कहते हैं. - हसतां- रमतां प्रगट करी मारुं जीव्युं' सफल एनुं स्वप्ने जे दर्शन तेनुं मन न चडे बीजे भामे [गुजरातीसे ] इंडियन ओपिनियन, ५-६-१९०९ देखुं रे तव लेखुं रे; पामे रे रे । 99 १५३. भाषण : जमिस्टनमें" [ जमिस्टन जून ७, १९०९] जब श्री गांधी बोलनेको खड़े हुए तो श्रोताओंने उनका उत्साहपूर्ण स्वागत किया। उन्होंने कहा : यद्यपि मैंने आज अनाक्रामक प्रतिरोध (पैसिव रेजिस्टेन्स) को अपना विषय चुना है, फिर भी मैं नहीं चाहता कि मैं भारतीय प्रश्नपर कुछ कहूँ। मैं उसकी केवल वहीं तक चर्चा करूँगा जहाँतक वह मेरे कथनपर प्रकाश डालने के लिए आवश्यक होगा। १. मूलमें गांधीजीने 'मन मेराजी' के स्थानपर 'मन्दिर में राजी' पाठ दिया है । २. दुःख । ३. रहना । ४. हँसते-खेलते । ५. मेर। । ६. जीवन । ७. उसका । ८. पाये । ९. उसका १०. जगद्द, ठौर । ११. जमिंस्टन साहित्यिक और वाद-विवाद समिति (जर्मिस्टन लिटरेरी ऐंड डिबेटिंग सोसाइटी ) के आमन्त्रण पर गांधीजीने कौंसिल चेम्बर में “अनाक्रामक प्रतिरोधकी नैतिकता" पर भाषण दिया था। उक्त समितिके अध्यक्ष श्री लिंटन जॉन्सने सभापतिका आसन ग्रहण किया था । श्रोताओंमें जर्मिस्टन के चुने हुए प्रमुख नागरिक थे । " हमारे संवाददाता द्वारा प्रेषित" रूपमें यह रिपोर्ट इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुई थी । Gandhi Heritage Heritage Portal