बुद्धिसे समझ लेनेके रूपमें। वक्ताने अपने भाषणको अनेक आधुनिक उदाहरणोंसे स्पष्ट किया।[१]
इंडियन ओपिनियन, १२-६-१९०९
१५४. पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को[२]
[जोहानिसबर्ग
जून ८, १९०९ के बाद]
'ट्रान्सवाल लीडर'
जोहानिसबर्ग]
महोदय,
उपनिवेश-सचिवने ब्रिटिश भारतीय समाजपर श्री मनिकके आरोपोंका तुरन्त और निर्णयात्मक उत्तर देकर भारतीय समाजको अनुगृहीत किया है। माननीय श्री मनिक कहते हैं कि लगभग १२ सालकी आयुके एशियाई बालक, जिनके माता-पिता कभी इस देशमें नहीं रहे, यहाँ आ रहे हैं और कानूनकी अवहेलना कर रहे हैं। यदि छ: मासमें केवल ५९ एशियाई ही यहाँ आये हैं और ये स्पष्टतः अधिकृत प्रवेशकर्ता हैं, तो यह साफ है कि श्री मनिकका समस्त समाजपर दोषारोपण निराधार है; और जबतक माननीय महानुभावके पास आरोपके समर्थनमें कोई दूसरी बात न हो और जबतक वह जनताके सम्मुख नहीं रख ही जाती, तबतक मेरी सम्मतिमें, समाजके प्रति माननीय महानुभावका कर्तव्य है कि उन्होंने जो आरोप लगाया है उसे वे वापस ले लें।
आपका, आदि,
मो० क० गांधी
ट्रान्सवाल लीडर, १२-६-१९०९
- ↑ अपना भाषण समाप्त करनेपर गांधीजीने बहुत-से प्रश्नोंका उत्तर दिया। बादको टाउन क्लार्क श्री मैके द्वारा पेश किया गया धन्यवादका प्रस्ताव हर्षध्वनिके साथ पास किया गया।
- ↑ गांधीजींने यह जी॰ जी॰ मनिक द्वारा ट्रान्सवाल-संसदमें ८ जूनको लगाये गये इस आरोपको लक्ष्य करके लिखा था कि "पिछले मासमें किसी अन्य मासकी अपेक्षा दुगुने भारतीय [उपनिवेशमें] आये हैं...उनकी 'चाल' इस देश में ऐसे बच्चोंको लानेकी है जिनके माता-पिता इस उपनिवेशमें कभी नहीं रहे।" उपनिवेश-सचिवने उत्तर दिया "... इस वर्ष देश में कुल ५९ एशियाई आये हैं, नौ नेटालके रास्ते और पचास मोजाम्बिकके रास्ते।" पत्र इंडियन ओपिनियन में १२-६-१९०९ को "वापस लो!" शीर्षकसे छपा था।