अबतक हमसे पूरी तरह सहमत नहीं थे, किन्तु जिन्होंने अब अपने आपको सत्याग्रही घोषित कर दिया है, और मुझे शिष्टमण्डलके लिए मनोनीत किया है। समितिमें एक सुझाव यह भी दिया गया कि इंग्लैंड तो एक शिष्टमण्डल जाये ही, परन्तु भारतकी जनताको यहाँकी स्थितिकी सही-सही जानकारी देनेके लिए एक शिष्टमण्डल भारत भी भेजा जाये। इसके लिए ये नाम सुझाये गये—ब्रिटिश भारतीय संघके सहायक अवैतनिक मन्त्री श्री पोलक, श्री एन॰ गोपाल नायडू, श्री एन॰ ए॰ कामा और एक चौथा नाम, जो उस वक्त तो नहीं दिया गया था लेकिन उसे अब हम सभामें रखते हैं। यह नाम है श्री कुवाड़ियाका। आज हम देखते हैं कि सरकारने श्री काछलियापर अपना हाथ डाल दिया है और वे जोहानिसबर्ग की जेलमें पड़े हैं। उन्हें पचास पौंड जुर्मानेकी सजा हुई है और अगर वे इसे न देंगे तो तीन महीनेका कठोर कारावास भोगेंगे। इस लड़ाईमें वे चौथी बार जेल गये हैं। श्री चेट्टियार भी गिरफ्तार हो गये हैं और वे भी तीन महीनेकी सजा काट रहे हैं। वीर थम्बी नायडू भी जेलमें ही हैं। श्री व्यास कल ही गिरफ्तार हुए हैं। उन्हें अपने भाईसे—जो बहुत बीमार हैं और शायद मरणासन्न हैं—मिलनेके लिए जमानतपर छोड़ दिया गया है। उनका मामला पन्द्रह दिनके लिए स्थगित कर दिया गया है। श्री नादेशीर कामा, अगर इस सभामें उचित रूपसे चुन लिये जाते तो, भारत रवाना हो जानेवाले थे। परन्तु वे भी गिरफ्तार हो गये हैं और उनके मामलेकी सुनवाईकी तारीख ऐसे ही कारणोंसे आगे बढ़ा दी गई है। भारत जानेवाले शिष्टमण्डलमें हमारे सुयोग्य सभापतिका भी नाम है। उन्हें भी दो बजे गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन अपने कारोबारको समेटनेके लिए उन्हें कुछ मोहलत दे दी गई है। निश्चय ही उन्हें भी तीन महीनेसे कमकी सजा नहीं होगी। इसी प्रकार ब्रिटिश भारतीय संघके उपाध्यक्ष श्री उमरजी सालेको और श्री दिलदार खाँको भी गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्हें जमानतपर अभी छोड़ दिया गया है, परन्तु उन्हें भी वही सजा दी जायेगी। ऐसी स्थितियाँ हैं, जिनमें आज हम यहाँ एकत्र हुए हैं। मैं नहीं जानता कि सरकार मुझसे क्यों नाराज है जो उसने मुझे अभीतक गिरफ्तार नहीं किया। परन्तु मैं इस सभामें घोषणा करता हूँ कि अगर सभामें इंग्लैंडको शिष्टमण्डल भेजनेका प्रस्ताव मंजूर हो जायेगा तो मैं निश्चित रूपसे अगले सोमवारको इंग्लैंडके लिए रवाना हो जाऊँगा। हाँ, उससे पूर्व अगर पहलेकी भाँति ट्रान्सवालकी सरकार मुझे फिर अपना मेहमान बना ले तो बात दूसरी है। मित्रो, जो भाई जेल गये हैं, वे अपने स्त्री-बच्चोंको पीछे छोड़ गये हैं। दुर्भाग्यवश, मैंने कल शामको एक दुःखी स्त्रीको रोते हुए देखा। परन्तु उसके आखिरी शब्द ये थे—"मैं चाहे रोऊँ या कुछ भी करूँ, पर आप देखेंगे कि मेरे पति बहादुरीके साथ अपने कर्तव्यका पालन करेंगे और पांचवीं बार जेल जायेंगे।" अब यह दिखाना इस सभाका काम है कि शेष भारतीय, जो बाहर रह गये हैं, क्या कर सकते हैं। मैं खूब जानता हूँ कि हमारे समाजके सब आदमी समान कष्ट नहीं उठा सकते। परन्तु अगर आप जेल नहीं जा सकते तो जो लोग जेल गये हैं उनकी मदद तो अवश्य ही कर सकते हैं। इसी तरह अन्य अनेक प्रकारसे अपनी सहानुभूति दिखाकर आप इस उद्देश्यमें सहायता कर सकते हैं। मुझे आशा है कि यह सभा अपने इस कर्तव्यका पालन करेगी।
इंडियन ओपिनियन, १९-६-१९०९