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१६१. पत्र: 'स्टार' को[१]

जोहानिसबर्ग
जून १८, १९०९

सेवामें


सम्पादक
'स्टार'
जोहानिसबर्ग


महोदय,

भले ही आपके विचार पत्रलेखकोंके विचारोंसे न मिलते हों, आपन हमेशा ही अपने समाचारपत्रके स्तम्भोंमें सार्वजनिक प्रश्नोंकी चर्चाके लिए स्थान देनेकी उदारता दिखाई है। मैं जानता हूँ कि ऐसी ही उदारता आप एशियाई संघर्षमें लगे हुए व्यक्तियोंके प्रति तबतक दिखाते रहेंगे, जबतक, समय आनेपर, संघर्ष खत्म न हो जाये। परन्तु मुझे भरोसा है कि आप इस संघर्षके नये दौरपर अपनी राय देनेकी कृपा करेंगे।

गत बुधवारको ब्रिटिश भारतीयोंकी आम सभाके[२] सभापतिने माननीय उपनिवेश-सचिवको उस सभामें पास किये गये प्रस्तावोंका सार तार द्वारा भेजा और उनसे प्रार्थना की कि जो लोग इंग्लैंड और भारत जानेवाले शिष्टमण्डलोंके प्रतिनिधि चुने जा चुके हैं, उनको दी गई सजाएँ और उनके मुल्तवी मुकदमे रोक दिये जायें। उपनिवेश सचिवने यह उत्तर दिया है:

आपके आज सुबहके तारके सम्बन्धमें उपनिवेश सचिवने मुझे आपको यह सूचित करने के लिए कहा है कि जब उन लोगोंको, जिनके नामोंका आपके तारमें जिक्र है, कानूनकी पंजीयन सम्बन्धी धाराओंकी अवज्ञाके कारण, गिरफ्तार करनेका निर्देश दिया गया तब यह मालूम ही न था कि उनके शिष्टमण्डलके सदस्य चुने जाने की सम्भावना है। हालांकि उपनिवेश-सचिवकी बहुत इच्छा है कि शिष्टमण्डलके सदस्योंकी आजादी में किसी प्रकारका दखल न दिया जाये, फिर भी उन्हें खेद है कि वे आपकी प्रार्थनाको मानने और कानूनी कार्रवाईमें दखल देने में असमर्थ हैं।

जनताको इस बातका पता नहीं है कि सरकारने उपनिवेशमें जासूस फैला रखे हैं, जो इस संघर्षमें सक्रिय भाग लेनेवाले व्यक्तियोंकी गतिविधियोंपर निगाह रखते हैं। उन्होंने सरकारके पास ब्रिटिश भारतीयोंकी हरएक सभाका, चाहे वह सार्वजनिक हो या असार्व-जनिक, विवरण भेजा है। जिन सदस्योंका चुनाव गत बुधवारको किया गया था उनके नाम सरकारके पास कुछ अर्सेसे मौजूद हैं। शिष्टमण्डलके सदस्योंके नाम समितिकी एक बैठकमें गत रविवारको अन्तिम रूपसे तय किये गये थे। इस बैठकमें लगभग तीन सौ भारतीय आये थे। अखबारोंको नाम तय किये जानेका पता चल गया था और सोमवारको संघके

  1. यह २६-६-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में "प्रतिनिधियोंकी कैद, सरकारका उनकी रिहाईसे इनकार" शीर्षकसे प्रकाशित किया गया था।
  2. देखिए "भाषण: सार्वजनिक सभामें", २५२-५४ और पिछला शीर्षक भी।