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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(एसोसिएशनके) दफ्तरमें पूछताछ की गई थी। ये नाम मंगलवारको स्थानीय अखबारोंमें प्रकाशित किये गये। चार प्रतिनिधि सर्वश्री काछलिया, कुवाड़िया, कामा और चेट्टियार बुधको गिरफ्तार करलिये गये। इसलिए यह विश्वास करना असम्भव है कि सरकारको इनके चुने जानेका पता नहीं था। उपनिवेश-सचिवके तारका पाठ इन दिये हुए तथ्योंके प्रकाशमें बिल्कुल स्पष्ट है। जब वे यह कहते हैं कि "यह बिल्कुल मालूम न था कि उनके शिष्टमण्डलके सदस्य चुने जानेकी सम्भावना है", तब उनका आशय केवल यही है कि उनको सार्वजनिक सभा मंजूर नहीं किया गया था और वे नहीं जानते थे कि सभा ऊपर बताई गई समितिकी नामजदगियोंको मंजूर करेगी या नहीं। किसीका यह मानना ठीक ही होगा कि यह बात सरकार नहीं जानती थी कि ये नाम सार्वजनिक सभामें पेश किये जायेंगे। यह खयाल करना भी ठीक ही होगा कि तीन सौ भारतीयों द्वारा की गई नामजदगी सार्वजनिक सभामें नामंजूर कर दी जानेकी सम्भावना नहीं थी। सरकारने सार्वजनिक सभाका निर्णय होनेतक कार्रवाई क्यों नहीं रोकी या प्रतीक्षा क्यों नहीं की? हर भारतीयका विश्वास है कि लन्दनमें दक्षिण आफ्रिकी अधिनियमके मसविदेपर विचारके समय कोई भारतीय शिष्टमण्डल न होना चाहिए, यह सरकारका इरादा था; वह ब्रिटिश भारतीयोंमें आतंक पैदा करके सार्वजनिक सभाको बिल्कुल असफल करना चाहती थी। उसने शिष्टमण्डलके शेष सदस्योंको केवल इसलिए स्वतन्त्र छोड़ दिया था कि वह खुद अपनी कार्रवाईसे डर गई थी। उसने सातमें से चार भारतीय प्रतिनिधियोंको ही गिरफ्तार नहीं किया है, बल्कि कुछ अच्छे कार्यकर्ताओं और भारतीय समाजके दृढ़निश्चयी लोगोंको भी गिरफ्तार कर लिया है। ये कुल मिलाकर सत्रह होते हैं। इनमें से कुछ उपनिवेशकी जेलोंमें चारसे ज्यादा बार जा चुके हैं। ये लोग विवाहित हैं और अपने पीछे रोते हुए स्त्री-बच्चे छोड़ गये हैं। प्रतिनिधियोंकी सजाओंको या मुकदमोंको मुल्तवी करनेसे इनकार करना उतना ही हृदयहीन कार्य है जितनी ये कार्रवाइयाँ, जो बिल्कुल आकस्मिक हैं और न्याय और शिष्टताके सामान्य नियम भंग करके की गई हैं।

मेरे देशवासियोंका खयाल है कि सर जॉर्ज फेरार, सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिक और प्रगतिवादी दलके अन्य सदस्य इस बर्बरतापूर्ण कार्रवाईके लिए उतने ही उत्तरदायी हैं जितने जनरल बोथा और जनरल स्मट्स। किन्तु वे निर्वाचकोंके नामपर कार्य करते हैं। मैं उनसे और पत्र-प्रतिनिधि एवं निर्वाचकके रूपमें आपसे भी पूछता हूँ। आपको एक व्यापक अधिकारयुक्त संविधान प्राप्त होनेवाला है। क्या आप जल्दी ही मिलनेवाली सत्ताका उपयोग अपने सहप्रजाजनोंपर, जिनकी चमड़ी संयोगसे गेहुँआ है, अत्याचार करनेमें करेंगे? इस मामलेकी अच्छाई-बुराईके सवालको छोड़िए किन्तु क्या जनताका सरकारसे, उचित जमानत लेकर भारतीय लोगोंके निर्वाचित नेताओंकी रिहाईकी माँग करना बेजा है?

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
स्टार, १९-६-१९०९