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१६३. पत्र: ट्रान्सवालके भारतीयोंको

[जोहानिसबर्ग
जून २१, १९०९ के पूर्व][१]

ट्रान्सवालके समस्त भारतीयोंकी सेवामें,

जो शिष्टमण्डल इंग्लैंड जा रहा है, उसमें मैं भी जा रहा हूँ। चारमें से दो प्रतिनिधि तो गिरफ्तार हो गये हैं और जेलमें जा बैठे हैं। दूसरे भारतीय भी, जो बहुत बार चोट खा चुके हैं, फिर पकड़ लिये गये हैं। ऐसे समयमें मुझे इंग्लैंड जाना तनिक भी अच्छा नहीं लगता। फिर भी, हमारे सभी यूरोपीय मित्रोंकी राय है कि मुझे इंग्लैंड जाना चाहिए; भारतीय समाज यही चाहता है और हमारी इंग्लैंडकी समितिकी राय भी ऐसी ही है। इसलिए मैं श्री हाजी हबीबके साथ जा रहा हूँ। किन्तु हमने जो माँगें की हैं और जिनके मंजूर न होनेसे सैकड़ों भारतीय जेल जा चुके हैं, वे इंग्लैंड जानेसे पूरी होंगी, यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता। यह भी सम्भव है कि लॉर्ड क्रू शिष्टमण्डलसे मिलनेसे इनकार कर दें और कहें कि जो लोग कानूनके विरुद्ध हैं, उनसे वे नहीं मिल सकते। शिष्टमण्डल भेजनेवाले लोगोंको यह समझ लेना चाहिए कि दक्षिण आफ्रिकाके सब अधिकारी इंग्लैंडमें इकट्ठे होंगे। ऐसे समय में शिष्टमण्डल भेजकर हम केवल आजमाइश कर रहे हैं, ताकि पीछे पछतावा न रहे। शिष्टमण्डलके ऊपर निर्भर रहना व्यर्थ है।

अक्सीर दवा तो केवल जेल जाना ही है। थोड़े-से भारतीय भी समय-समयपर जेल जाते रहेंगे तो अन्तमें हम जो माँग रहे हैं, वह अवश्य मिलेगा। ऐसा एक भारतीय भी यदि अन्ततक लड़ता रहा तो भी मिलेगा।

यह लड़ाई सच और झूठकी है। सच भारतीय समाजके पक्षमें है, इसलिए उसकी जय[२] होनी ही चाहिए। शिष्टमण्डलको मदद देना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है। भारतीय समाजमें फूट डालनेवाले लोग मौजूद हैं। सरकारके पास भारतीय गुप्तचर हैं। उनके जरिये भारतीय समाजको गलत रास्तेपर ले जानेके उपाय किये ही जाते रहते हैं। शिष्टमण्डल इंग्लैंडमें होगा तब और भी प्रयत्न किये जायेंगे। इन सबका मुकाबला करना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है। जो जेलके कष्ट सहन नहीं कर सकते उनको चुपचाप घर बैठना चाहिए। कोई व्यक्ति किसी भी कागजपर दस्तखत करानेके लिए आये तो यह जरूरी है कि अच्छी तरह पूछताछ किये बिना दस्तखत कतई न किये जायें।

शिष्टमण्डलकी मदद करनेके लिए स्थान-स्थानपर सभाएँ करना जरूरी है। ये सभाएँ केवल ट्रान्सवालमें ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण आफ्रिकामें की जानी चाहिए। यह भी याद रखना चाहिए कि यह शिष्टमण्डल सत्याग्रहियोंकी खातिर नहीं जा रहा है। सत्याग्रहियोंका विश्वास तो केवल सत्यपर है। वे सत्यका आचरण करें, यही उनकी जीत है। किन्तु जो

  1. स्पष्ट है, यह और इससे अगलेके तीन शीर्षक २१ जूनसे पूर्व लिखे गये थे, क्योंकि गांधीजी इस तारीखको हाजी हबीबके साथ केपके रास्ते इंग्लैंडको रवाना हो गये थे।
  2. मूलमें 'जय' के स्थानपर 'जन्म' छप गया है।