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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

शेलतका मुकदमा

श्री शेलत गिरफ्तार हो गये, यह लिखा जा चुका है।[१] उनका मुकदमा मजिस्ट्रेटके निजी दफ्तरमें पेश किया गया था। पहले मजिस्ट्रेटने उनके वारंटमें कोरे पन्नेपर हस्ताक्षर किये; अर्थात् किस मार्गसे निर्वासित किया जाये, यह उसमें नहीं था। पीछे श्री गांधी न्यायाधीशके पास गये और उनको सूचित किया कि उन्हें वारंटमें कोरे पन्नेपर दस्तखत करनेका हक नहीं है। इसके बाद श्री शेलतको नेटालकी सीमापर छोड़नेकी आज्ञा दी गई। फिर उनको प्रिटोरिया ले जाया गया। वहाँ उनको श्री चैमनेने समझाया कि उन्हें पंजीयन प्रमाणपत्रकी (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेटकी) अर्जी देनी चाहिए। श्री शेलतने इससे साफ इनकार कर दिया और खूब हिम्मत दिखाई।

जेम्स गॉडफ्रे

मैं श्री जेम्स गॉडफेको अनुमतिपत्र भेजा जानेकी बात ऊपर लिख चुका हूँ। मुझे दुःख है कि उन्होंने ऐसी जमी लड़ाईमें अर्जी देकर अनुमतिपत्र मँगाया और कानूनके अधीन होनेका इरादा किया। मैं आशा करता हूँ कि वे कानूनके अधीन नहीं होंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-६-१९०९

१६६. पत्र: हबीब मोटनको

[ जोहानिसबर्ग
जून २१, १९०९ से पूर्व ]

सेठश्री हबीब मोटन,

आपके १७ जुनके पत्रका[२] मेरा उत्तर निम्न प्रकार है:

मुस्लिम लीगकी माँग क्या थी, यह मुझे ठीक पता नहीं है, क्योंकि मैं तब जेलमें था और इस बीचकी घटनाओंपर मैंने अभी नजर नहीं डाली है। मैं वाइसरायकी परिषदमें किसी मुसलमानको सम्मिलित करना उचित मानता हूँ। उस परिषदमें मुसलमान सदस्यकी नियुक्तिकी आज्ञा लॉर्ड मॉलेने दी है तो मैं उसको वाजिब समझता हूँ। मैं हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच फर्क नहीं मानता। मेरी दृष्टिमें दोनों एक भारतमाताकी सन्तानें हैं। मेरा अपना विचार तो यह है कि हिन्दुओंका संख्या-बल अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है। हिन्दू खुद मानते हैं कि उनमें विद्या-बल भी ज्यादा है। इस दृष्टिसे हिन्दुओंको अपने मुसलमान भाइयोंको जैसे भी हो वैसे ज्यादा देकर प्रसन्न होना चाहिए। सत्याग्रहीके रूपमें मैं तो खास तौरसे मानता हूँ कि जो

  1. देखिए "नायडू और अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ २५१ ।
  2. हबीब मोटनने अपने पत्र में गांधीजीसे मोटे तौरपर ये सवाल पूछे थे: मुस्लिम लीगके शिष्टमण्डलने लन्दनमें लॉर्ड मॉलेंसे मिलकर हक्कोंकी जो माँग की है, वह वाजिब है या नहीं; वायसरायकी कौंसिल में एक मुसलमान सदस्य लिये जानेका अनुरोध उचित है या नहीं; लॉर्ड मोर्ले द्वारा उस अनुरोधकी स्वीकृति के बारेमें उनका (गांधीजीका) क्या खयाल है; और हिन्दू-मुस्लिम एकता कैसे स्थापित हो सकती है।