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पत्र: मणिलाल गांधीको

चीज मुसलमान माँगें, हिन्दुओंको चाहिए कि वे उन्हें ले लेने दें और खुद जो त्याग करना पड़े, उससे सन्तुष्ट रहें। आपसमें ऐसी उदारता दिखाई जाये, तभी एकता होगी। जो सिद्धान्त दो सगे भाइयोंके बीच लागू होता है, उसी सिद्धान्त के अनुसार हिन्दू और मुसलमान व्यवहार करें तो दोनोंमें हमेशा एकता रहेगी और तभी भारतकी उन्नति होगी।

मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-६-१९०९

१६७. पत्र: मणिलाल गांधी को

जोहानिसबर्ग
जून २१, १९०९

चि॰ मणिलाल,

आज मुझे तुमको गुजरातीमें पत्र लिखनेकी फुर्सत नहीं है। मैं दादा उस्मानका हिसाब भेज रहा हूँ। तुम इसे पढ़ना और अपना उत्तर भेज देना। इसे बा को भी दिखा देना। यह याद रखना कि ईस्ट इंडिया ट्रेडिंग कम्पनीसे जो भी चीजें लेते हो उससे कर्ज बढ़ता है। तुम अपना जवाब सीधे मेरे पतेपर इंग्लैंड न भेजना, बल्कि कुमारी श्लेसिनको[१] भेजना। अगर मैं आज रवाना हो गया तो वे मेरे पास भेज देंगी। पुरुषोत्तमदासके सम्बन्ध में—मुझे आशा है, तुम उनकी आज्ञा चुपचाप मानोगे, और अपने दिमागसे यह खयाल निकाल दोगे कि तुम वहां नहीं पढ़ सकते। तुम्हें शक्ति-भर प्रयत्न करना चाहिए।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ८३) से।

सौजन्य: सुशीलाबेन गांधी।

 
  1. सॉजा श्लेसिन प्रारम्भमें गांधीजीकी स्टेनो-टाइपिस्ट थीं, लेकिन आगे चलकर उन्होंने सत्याग्रह-संघर्षमें बड़ा महत्त्वपूर्ण भाग लिया; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २४-२५ ।