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१६८. पत्र : डी॰ ई॰ वाछाको[१]

जून २३, १९०९

प्रिय श्री वाछा[२],

पत्रवाहक श्री छ॰ खु॰ गांधी मेरे भतीजे हैं। इन्होंने अपनेको सार्वजनिक कार्योंमें अर्पित कर दिया है। आपसे अनुरोध है कि इनकी सहायता करें और इन्हें फीरोजशाह[३] तथा अन्य नेताओंसे मिला दें।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ४९५०) से।

सौजन्य: छगनलाल गांधी

१६९. भेंट: 'केप टाइम्स ' को[४]

[ केप टाउन
जून २३, १९०९]

[गांधीजी:] हम इंग्लैंड खास तौरसे ट्रान्सवालमें चल रहे एशियाई संघर्षके सम्बन्धमें जा रहे हैं। हम इसे साम्राज्य सरकार और ब्रिटिश जनताके सम्मुख सारी स्थिति रखनेका अत्यन्त उपयुक्त अवसर मानते हैं। हम यह भी अनुभव करते हैं कि यह मामला वास्तवमें ऐसा है, जिसमें आपसी व्यक्तिगत बातचीतसे बहुत कुछ हो सकता है।

  1. श्री छगनलाल गांधीने इस परिचय पत्रका उपयोग नहीं किया।
  2. दिनशा इदुलजी वाछा; १९०१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष; देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४२१।
  3. सर फीरोजशाह मेहता; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके संस्थापकोंमेंसे एक; देखिए, खण्ड १, पृष्ठ ३९५ ।
  4. केप टाउनके भारतीयोंने गांधीजी और हाजी इमीनके शिष्टमण्डलके रूपमें इंग्लैंडको प्रस्थान करनेसे पूर्व केनिलचर्थ कैंसिल जहाजमें उनका स्वागत किया गया था। गांधीजीसे केप टाइम्स और केप आर्गसके प्रतिनिधियोंने भेंट की थी। ये भेंट जो बादमें ३-७-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में छापी गई तत्वतः एक-सी थीं। किन्तु केप आर्गसमें छपे विवरणके शुरूमें यह अनुच्छेद था: "रवानगीसे ठीक पहलेआर्गसके प्रतिनिधिके भेंट करनेपर श्री गांधीने संकेत दिया कि उन्हें ट्रान्सवाल-अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किये जानेकी बहुत-कुछ आशंका थी; किन्तु उनके मार्गमें कोई रुकावट नहीं डाली गई। उन्होंने यह भी कहा कि मैं और मेरे साथी प्रतिनिधि श्री हाजी हबीब लन्दनमें दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिकी सलाहसे काम करेंगे। हम इतना ही चाहते हैं कि हमें हमारे अधिकारों की सुरक्षाका आश्वासन दे दिया जाये। मुझे अपने कार्य में सफलता मिलने की पूरी आशा है। "