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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुत झिझकेगी। इस समय भी प्रत्येक उपनिवेश ब्रिटिश सरकारपर इतना अधिक दबाव डालता है कि ब्रिटिश सरकार रंगदार जातियोंको प्रभावित करनेवाले कानूनोंके सम्बन्धमें अपने निषेधाधिकारका प्रयोग बहुत कम करती है और जब वे कानून दक्षिण आफ्रिकाकी संघ-संसद द्वारा मंजूर होकर आयेंगे तब तो वह ऐसा करनेकी और भी कम इच्छा करेगी।

श्री गांधीने, जो लगभग तीन मास तक बाहर रहने की आशा करते हैं, ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी गिरफ्तारियोंका भी उल्लेख किया और कहा, यह आशा नहीं थी कि मुझे गिरफ्तार न करके सीमा पार करने दिया जायेगा; किन्तु मेरे रास्तेमें कोई रुकावट नहीं डाली गई। वे यहाँ जहाज छूटनेसे लगभग दो घंटे पहले डाकगाड़ीसे आये थे।

[अंग्रेजीसे]
केप टाइम्स, २४-६-१९०९

१७०. शिष्टमण्डलकी यात्रा—१

[जून २३, १९०९ के बाद]

तुलना

जब सन् १९०६ के अक्तूबरमें भारतीय समाजने इंग्लैंडको शिष्टमण्डल भेजा था, वह समय दूसरा था, इस शिष्टमण्डलकी यात्राका समय उससे भिन्न है।

१९०६ में भारतीय समाज जेल जानेके लिए प्रतिज्ञा-बद्ध था। किन्तु कोई निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकता था कि यदि सरकारने सुनवाई नहीं की तो कौन जेल जायेगा। इस बार हम जेल जानेवाले सत्याग्रहियोंको जानते हैं। १९०६ भारतीय समाज खुद नहीं जानता था कि उसमें कितनी ताकत है। अब तो उसकी इस ताकतको सारी दुनिया जान गई है।

फिर भी तुलनामें १९०६ के शिष्टमण्डलका काम आसान था। इस बार वह मुश्किल है। हमें मंजूर किये हुए कानूनको रद कराना है। १९०६ में ब्रिटिश सरकारका मत क्या है, यह हम नहीं जानते थे। इस बार सरकारने अपना मत बता दिया है। फिर भी शिष्टमण्डल निर्भय होकर जाता है, क्योंकि हमें अब इस बारेमें बहुत कुछ बेफिक्री है कि इंग्लैंडमें क्या होगा। हमें अपनी लड़ाई सत्याग्रहकी परखी हुई तलवारसे लड़नी है।

तैयारी

शिष्टमण्डलकी तैयारी कुछ दिन पहलेसे जारी थी। मगर भारतीय समाज ऐसे मामलोंमें उलझा है कि शिष्टमण्डलके रवाना होनेके दिन तक यह निश्चित नहीं था कि शिष्टमण्डल जायेगा या नहीं। रुपया भी पूरा इकट्ठा नहीं हुआ था। जहाजके टिकट भी रवाना होनेके दिन (सोमवार २१ जूनको) प्रातः ग्यारह बजे खरीदे गये। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता था कि शिष्टमण्डल निश्चित रूपसे जायेगा। शेष सदस्योंको गिरफ्तार करना सरकारके हाथकी बात