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शिष्टमण्डलकी यात्रा—[१]

थी। और कुछ लोगोंका खयाल था कि गाड़ीमें सवार होते वक्त भी पकड़ा-पकड़ी होगी। फिर भी शिष्टमण्डल चल पड़ा। किन्तु वह लंगड़ा-लूला है। उसका एक पैर टूट गया है। श्री काछलिया और श्री चेट्टियार जो शिष्टमण्डलके दाहिने पैरके समान हैं, वे दोनों ही जेलमें हैं; हाजी हबीब तथा मैं यात्रामें हैं। यह हममें से किसीको भी अच्छा नहीं लगता। परन्तु मेरा खयाल है कि श्री काछलिया और श्री चेट्टियार जेलमें से जैसी पुकार करेंगे वैसी इंग्लैंडमें जाकर नहीं कर सकते थे। वे जेलमें जो सुख भोगेंगे वह हमको पहले दर्जेमें जहाजकी यात्रा करते हुए नहीं मिलना है। सत्याग्रहीको दूसरा खयाल भी नहीं आता। मेरे अनुभवसे तो यही सिद्ध होता है। किन्तु यह मैं विस्तारसे भविष्यमें बताऊँगा।

स्टेशनपर

पार्क स्टेशन भारतीयोंसे खचाखच भरा था। करीब पाँच सौ भारतीय रहे होंगे। श्री अस्वात और श्री नगदी भी, जो रुपया इकट्ठा करनेके लिए क्रूगर्सडॉर्प गये थे, स्टेशन आ गये थे। पुलिसने खास इन्तजाम किया था। कोई धक्का-मुक्की करते दिखाई नहीं दिया। बहुत-से भारतीय पीछेकी ओर खड़े कर दिये गये थे। अनेक लोग गजरे आदि लाये थे। यह तो दिखाई देता था कि सभीके चेहरोंपर शिष्टमण्डलकी यात्रा सफल होनेकी आशा झलकती थी। श्री कैलेनबैंक, उनके साथी श्री केनेडी, श्री मैक्इनटायर, कुमारी ऑलिव डोक, कुमारी श्लेसिन और श्री पोलक भी स्टेशनपर मौजूद थे। वहाँसे ठीक ६-१५ पर गाड़ी रवाना हुई।

मार्गमें

जब हम वेरीनिगिंग में पहुँचे तब, वहाँके सारेके-सारे भारतीय स्टेशनपर आये थे। कह सकते हैं, उन्होंने शिष्टमण्डलका स्वागत किया। वे टोकरी भरकर फल लाये थे, जो अबतक चल रहे हैं। हाफेजी देशी इत्रकी शीशी लाये थे।

वॉर्स्टर स्टेशनपर रॉबर्टसनसे बहुत-से भारतीय आये थे। वे भी फूल और फल लाये थे। रॉबर्ट्सनमें मुख्यतः तमिल लोगोंकी बस्ती है, इसलिए वॉटरमें अधिकांशतः तमिल भाई ही थे।

मार्गमें श्री हाजी हबीबकी दायीं आँखमें दर्द था। यह जोहानिसबर्गसे ही हो रहा था। आँख सुर्ख थी और उससे पानी बहुत बहता था। उसको गर्म पानीमें थोड़ा नमक डालकर धोया। उससे कुछ आराम रहा, किन्तु नहीं के बराबर। जहाजमें डॉक्टरको आँख दिखानी पड़ी है। यह विवरण लिखते समय भी दर्द बिल्कुल नहीं गया है, फिर भी आराम हो रहा है। हर रोज आँखमें दो-तीन बार दवाकी बूँदें डालता हूँ। इसके अतिरिक्त बर्फके पानीकी पट्टी भी रखी जाती है। डॉक्टर भी अच्छी देखभाल करता है।

केप टाउनमें

गाड़ी केप टाउनमें आधा घंटा देरसे पहुँची। स्टेशनपर कुछ भारतीय आये थे; बाकी सब जहाजपर मिले। श्री आंगलिया उसी दिन डर्बन जानेवाले थे, इसलिए उनकी दावत थी। उसमें बहुत-से भारतीय रुक गये थे। यहाँ भी भारतीयोंने हमें फूल-फल आदि देकर बिदा किया।