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शिष्टमण्डलकी यात्रा—[१]
रॉबर्ट्सनके भारतीयोंका तार निम्न प्रकार है:
कामना है आपकी यात्रा सुखमय हो। ईश्वर आपको आपके कार्यमें सफलता दे, ऐसी उससे प्रार्थना करते हैं।
इन शुभकामनाओंको साथ लेकर हम केप टाउनसे बिदा हुए।

"संघके सम्बन्धमें कुछ कीजिएगा"

बहुत-से भारतीय भाइयोंने शिष्टमण्डलको सलाह दी है कि वह संघ (यूनियन) के प्रश्नको भुला न दे। मुझे कहना चाहिए कि यह सलाह संघका सार समझे बिना दी गई है, इसलिए इस सम्बन्धमें दो शब्द कहता हूँ। जहाजमें इस प्रश्नपर मैं अधिक विचार और बात कर सका हूँ। संघके विधेयक (बिल) में हमारे सम्बन्धमें कुछ भी बात नहीं है। उसके अन्तर्गत सब उपनिवेश इकट्ठे हो जायेंगे। इसके बावजूद सम्बन्धित उपनिवेशोंके कानून कायम रहने हैं। इसके विरोधमें क्या कहा जा सकता है? उपनिवेश संघबद्ध हों, इसके विरोधमें हम कुछ कह या कर नहीं सकते। संघ बननेके बाद यदि कोई कानून बनानेका प्रयत्न किया जाये तो उसके बारेमें हम लड़ सकते हैं। संघ बनने-मात्रसे कोई हमारा हक नहीं मारा जाता। संधीकरणका असर ऐसा होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं। किन्तु हम संघका विरोध यह कहकर तो नहीं कर सकते कि संघ हमारा मूलोच्छेद कर देगा। मूल बात यह है कि उपनिवेशके गोरे लोग भी शत्रुताका बरताव करते हैं। ये शत्रु एकत्र हो जायेंगे, इसलिए ज्यादा दबाव डालेंगे ही। इसका उपाय क्या है? हम उनको एक होनेसे तो नहीं रोक सकते।

कोई यह नहीं कहता कि शत्रु संगठित होते हैं तो हम सब भारतीय संगठित हों। यह वास्तविक उपाय है। भारतीय यह न कहकर कहते हैं कि इंग्लैंडसे कुछ लाना। इससे हमारी लाचारी जाहिर होती है। उपनिवेशी यूरोपीय बलवान हैं और साम्राज्यके लाड़ले बच्चे हैं। हम दुर्बल और उपेक्षित बेटे हैं। लाड़ले बच्चोंके मुकाबले माँसे उपेक्षित बेटोंको न्याय कैसे मिले? अर्जी देकर? यह तो कभी सम्भव नहीं। अर्जीमें जब आज्ञाकी शक्ति होती है तभी वह काम देती है। जब हम जोर लगा सकते हैं तब अर्जी आज्ञा-रूपी मानी जाती है। यह समझना चाहिए कि अर्जी सविनय आज्ञा है। बल दो प्रकारका होता है—एक शरीरबल और दूसरा आत्मबल या सत्याग्रह। शरीरबल सत्यबलके सम्मुख कुछ भी नहीं है। इसलिए हम सत्यबल सीखें तो "संघके सम्बन्धमें कुछ कीजिएगा", ऐसी बात कहना भूल जायें।

यह ठीक है कि डॉक्टर अब्दुल रहमान[१] संघ (यूनियन) के सम्बन्धमें ही [इंग्लैंड] जा रहे हैं, क्योंकि संघ-कानूनमें काले लोगोंके कुछ हक अभीसे ही रद हो जाते हैं। बात ऐसी हो, तो कोशिश करनी चाहिए। ऐसा हमारे मामलेमें नहीं है। फिर भी किसीको यह न मानना चाहिए कि शिष्टमण्डल संघके प्रश्नको उठायेगा ही नहीं। उसको उठाये बिना गुजारा नहीं। संघकी बात उठ रही है, तभी तो यह शिष्टमण्डल जा रहा है। इसके अलावा वह अच्छी तरहसे कहेगा कि ट्रान्सवालके कष्ट कायम रहें, तो संघ नहीं बनाया जाना चाहिए। इसके आगे मैं यह कहता हूँ कि यदि भारतीय पूरा बल लगायें तो शिष्टमण्डलकी बात मंजूर हुए बिना कदापि न रहेगी। इसके अतिरिक्त शिष्टमण्डल समस्त दक्षिण आफ्रिकाके लिए बने हुए कानूनोंकी

  1. आफ्रिकी राजनैतिक संगठन (आफ्रिकन पॉलिटिकल ऑर्गनाइजेशन) के अध्यक्ष और केप टाउन नगरपालिका (म्युनिसीपैलिटी) के सदस्य; देखिए खण्ड ५, १४ २४९ और २५३ ।