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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बात भी उठायेगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि ये कानून रद हो जायेंगे। इनको रद करानेके लिए तो सत्याग्रह ही करना होगा। किन्तु हम यह मानते हैं कि बातचीत करनेसे ब्रिटिश सरकार उपनिवेशोंके साथ कोई समझौता कर सकती है। मुझे आशा है कि इस स्पष्टीकरणको भारतीय समझ सकेंगे। इस प्रश्नपर सब लोग ज्यों-ज्यों सोचेंगे त्यों-त्यों स्पष्ट होता जायेगा कि संघके सम्बन्धमें जितना जोर लगाया जा सकता है उतना तो शिष्टमण्डलने लगाया ही है। यह कानूनकी बारीकीकी बात है। यह कानूनकी जानकारीके बिना पूरी तरह कैसे समझमें आये?

हमारे साथी यात्री

हमारे साथ केपके प्रधानमंत्री श्री मेरीमैन[१] और उनके साथ श्री साँवर[२] हैं। नेटालके श्री स्माइल और श्री ग्रीन हैं। ऑरेंज रिवर कालोनीके श्री बोथा हैं। इनके सिवा दूसरे अंग्रेज मुसाफिरोंके नाम देनेकी जरूरत नहीं है।

"रंगदार लोगों" (कलर्ड पीपुल) का शिष्टमण्डल भी इसी जहाजमें है। इसमें डॉ॰ अब्दुल रहमान, श्री फ्रेड्रिक, श्री लॉडर्स और श्री मैवेला हैं। मुझे दुःख है कि डॉक्टर अब्दुल रहमान और उनके दो अन्य साथी दूसरे दर्जेमें हैं और श्री मैवेला तीसरे दर्जेमें। इससे उस शिष्टमण्डलकी इज्जतमें बट्टा लगता है। ये काले लोगोंके प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे इस स्थितिमें जा रहे हैं, यह ठीक नहीं जान पड़ा। मैं देखता हूँ कि जब बहुत हीन स्थितिके कुछ यूरोपीय पहले दर्जेमें हैं, तब उक्त रंगदार प्रतिनिधि दूसरे और तीसरे दर्जेमें हैं। पूछताछ करनेसे मालूम पड़ा है कि इस शिष्टमण्डलको रुपयेकी बड़ी दिक्कत हुई; इस कारण इसके सदस्य इस तरह यात्रा कर रहे हैं। इस शिष्टमण्डलके दो अन्य सदस्य अभी पिछले जहाजमें आनेवाले हैं। डॉ॰ अब्दुल रहमानने श्री श्राइनरके सम्बन्धमें, जो उन लोगोंकी ओरसे पहले चले गये हैं, मुझे कुछ बहुत ही जानने योग्य बातें बताई हैं। इतना ही नहीं कि उन्होंने स्थानीय संसदमें काले लोगोंका मामला बहुत जोरदार ढंगसे पेश किया है, बल्कि अब उनकी हिमायत करनेके इरादेसे ही खुद इंग्लैंड गये हैं। उनको कोई दूसरा काम नहीं था, फिर भी वे वहाँ अपने खर्चेसे गये हैं। उन्होंने काले लोगोंसे अपने खर्चेके लिए फूटी कौड़ी भी नहीं ली है। उनका वकालतका धन्धा बहुत अच्छा चलता है। फिर भी वे मालदार नहीं हैं, क्योंकि वे अपने विशाल कुटुम्बपर, और परोपकारके कामोंमें, बहुत धन खर्च करते हैं। वे डीनीजूलूके मुकदमेमें लगभग दो महीने तक व्यस्त रहे; फिर भी उनकी फीस अभीतक नहीं मिली है। और वे खुद इस सम्बन्धमें उदासीन हैं। इसका नाम है वकील। [पहले] सच्चे वकीलोंका ऐसा ही जीवन होता था। वे वकालत परोपकारके लिए करते थे, पैसा कमानेके लिए नहीं। परोपकार करते हुए जो पैसा मिलता, उसको वे लेते थे और उसे नजराना या खुशीसे दी गई फीस कहा जाता था। उस नजरानेका दावा नहीं हो सकता था। इसके अलावा श्री श्राइनर पचास काली चमड़ीवाले लोगोंके लिए ऐसा करते हैं। इससे हमें समझना चाहिए कि यूरोपीयोंमें भी ऐसे महान परोपकारी लोग मौजूद हैं जो अपने परोपकारके दायरे में

  1. जॉन जैवियर मेरीमेन (१८४१-१९२६); केप कालोनीके प्रधान मन्त्री, १९०८-१०।
  2. जे॰ डब्ल्यू॰ सॉवर, विधान-सभाके सदस्य; एक "लोकोपकारी स्वतंत्र विचारक", जिन्होंने 'नाइटहुडका सम्मान लेना अस्वीकार कर दिया।