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श्री पोलफ और उनका कार्य

दूसरी जातियोंके लोगोंको भी शामिल रखते हैं। मुझे तो लगता है कि हमें किसी भी जातिका मूल्यांकन करते समय उसके अच्छे लोगोंके उदाहरणोंको लेना चाहिए। ऐसा करनेसे ही पृथक्-पृथक जातियाँ साथ-साथ रह सकती हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-७-१९०९

१७१. श्री पोलक और उनका कार्य

भारत में जनमत तैयार करने और भारतको अपने कर्तव्यके प्रति जगानेके उद्देश्यसे, ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीयोंके प्रतिनिधिकी हैसियतसे, श्री एच॰ एस॰ एल॰ पोलक द्वारा भारतके लिए प्रस्थान करनेके अवसरपर हमारे पाठकोंको श्री पोलककी संक्षिप्त जीवनी पढ़कर खुशी होगी। श्री हेनरी सॉलोमन लिअन पोलकका जन्म आजसे ठीक २७ वर्ष पूर्व डोवर, इंग्लैंड में हुआ था। वे श्री जे॰ एच॰ पोलक, जे॰ पी॰ के पुत्र हैं। श्री जे० एच० पोलक लन्दनकी दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके सदस्य हैं। श्री पोलक लन्दन विश्वविद्यालयके अन्डर- ग्रेजुएट हैं, और उनके पास लन्दन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स (व्यापार संघ) तथा अन्य शिक्षा-संस्थाओंके साहित्यिक तथा आर्थिक विषयोंके अनेक प्रमाणपत्र हैं। उन्होंने अपनी शिक्षा इकोल द कॉमर्स, न्यूचैटेल, स्विट्जरलैंडमें पूरी की। इसके बाद वे लन्दनकी सोसाइटी ऑफ़ केमिकल इंडस्ट्री (रसायन उद्योग समिति) के सहायक सचिव नियुक्त हुए। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणोंसे श्री पोलक सन् १९०३ के आरम्भमें दक्षिण आफ्रिका आये। भारतीयोंका पक्ष अपनाने, और इस पत्रिकाका सम्पादक-पद, जो परमार्थका कार्य था और अब भी है, स्वीकार करनेसे पहले वे पत्रकारिता कर रहे थे। अपने कुछ आदर्शोंको व्यावहारिक रूप देनेकी इच्छासे उन्होंने एक ऐसा पद छोड़ दिया जिसे पैसेके लिहाजसे बहुत अच्छा कहा जा सकता था, तथा जिसमें और भी आर्थिक तरक्कीकी उम्मीद थी; और सन् १९०४ में फीनिक्स योजनामें शामिल हो गये। इसमें उसके सदस्योंको केवल इतना ही पैसा मिलता है, जितना सादेसे-सादे ढंगसे रहनेके लिए पर्याप्त हो। जैसा कि इस पत्रके पाठकोंको ज्ञात है, इस योजनाका ध्येय टॉल्स्टॉय और रस्किनकी मूलभूत शिक्षाको कार्यान्वित करना और अपनी बाह्य गतिविधियों द्वारा दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतें दूर करानेमें सहायता देना है। भारतीयोंके सार्वजनिक कार्योंकी आवश्यकताओंको ध्यान में रखते हुए और इस पत्रसे सम्बन्धित अपने कर्तव्योंका अधिक सुचारु रूपसे निर्वाह करनेकी दृष्टिसे श्री पोलकने सन् १९०६ में श्री गांधीके अधीन वकालतका प्रशिक्षण लेना प्रारम्भ किया और सन् १९०८ में उन्हें ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयसे अटर्नीकी सनद मिल गई।

सन् १९०६ से श्री पोलक ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके अवैतनिक सहायक मन्त्रीके रूपमें काम कर रहे हैं। यह काल दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंके इतिहासका सबसे संकटका समय रहा है। इसमें सत्याग्राह आन्दोलनसे घनिष्ठ रूपसे सम्बन्धित श्री पोलक सरीखे लोगोंके अथक उत्साह और निष्ठाकी परीक्षा हुई है। पिछले तीन वर्षोंसे श्री पोलकने आराम नहीं जाना है। उन्होंने अपनी योग्य लेखनीका निरन्तर उपयोग करनेके अलावा दक्षिण आफ्रिका-भरमें भ्रमण भी किया है। ये यात्राएँ उन्होंने सत्याग्रह संघर्षके लिए चन्दा जमा

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