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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेके लिए, अथवा सार्वजनिक सभाओंमें भाषणों द्वारा उप-महाद्वीपके विभिन्न भागोंमें रहनेवाले भारतीयोंको संघर्षके स्वरूपसे परिचित करानेके लिए कीं। दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीय प्रवासियों और एशियाई कानूनोंसे सम्बन्धित विभिन्न प्रश्नोंके विषय में श्री पोलककी जानकारी करीब-करीब बेजोड़ है। बिल्कुल सही जानकारी रखनेकी अपनी उत्कंठामें उन्होंने मामूलीसे-मामूली चीजका अध्ययन किया है, और पूरी स्थितिका सही स्वरूप समझनेकी गरजसे जो कुछ अवकाश मिल सका, उसमें उन्होंने आधुनिक भारतीय इतिहासका अध्ययन भी किया है। भारतके अनेक प्रमुख समाचारपत्रों और पत्रिकाओंमें लेख आदि लिखते रहकर श्री पोलकने सामयिक भारतीय विचारधारासे सदा सम्पर्क रखा है। इसलिए वे भारतीय जनताके लिए कोई अपरिचित व्यक्ति नहीं हैं। भारतके लोगोंको यह जानकर निःसन्देह खुशी होगी कि भारतीय जीवन और चरित्रके अन्तरंग पहलूसे परिचित होनेके लिए श्री पोलक दक्षिण आफ्रिकामें अपनी यात्राओंके दौरान सदा भारतीय घरोंमें भारतीयोंकी भाँति ही रहे हैं। भारतीयोंके मनपर उनका इतना अधिकार हो गया है कि जब भारतीय नेता जेलोंमें थे, उस समय वे श्री पोलककी सलाह लेनेको उत्सुक रहते थे, और उन सलाहोंका लगनसे पालन करते थे।

श्री पोलकका विवाह सन् १९०५ में हुआ था। अपने पतिके समान ही आत्म-त्याग तथा सेवा-भावना रखनेवाली श्रीमती पोलकके प्रति दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजका ऋण कुछ कम नहीं है। पिछले कुछ समयसे उन्होंने भारतीय महिलाओंकी सभाएँ आयोजित करनेका काम स्वयं उठा लिया है और तन-मनसे अपने काममें लग गई हैं। दक्षिण आफ्रिकामें उनके दो सन्तानें हुई हैं। श्री पोलक एक प्राचीन यहूदी घरानेके हैं, और एक ऐसी जातिके सदस्य होनेके नाते, जिसे बहुत अत्याचारोंसे गुजरना पड़ा है, वे दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंके कष्टोंको कम करनेमें सहायक होना अपना सौभाग्य मानते हैं। युवावस्थासे ही नीतिशास्त्रके प्रति उनकी गहरा रुझान था। श्री पोलकके लिए धर्म और नीतिशास्त्र एक दूसरेके पर्याय हैं। अतः उन्होंने स्वाभाविक रूपसे लन्दनकी साउथ प्लेस एथिकल सोसाइटी [नैतिकता समिति] से सम्बन्ध स्थापित कर लिया था, और आज भी वे उसके सदस्य हैं। यह उनका नैतिक दृष्टिकोण ही था कि उन्होंने भारतीयोंका काम हाथमें लेनेकी आवश्यकता अनुभव की।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-७-१९०९