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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह सब मैं यों ही नहीं लिखता; वरन् विचारपूर्वक लिख रहा हूँ। ऐसे विचार हर रोज आते रहते। मैंने जितना पढ़ा है, या मैं जितना पढ़ता हूँ, उसका अनुभव भी करता हूँ। मैंने यह सीखा कि जो ईश्वर-भजन करना चाहता है, उसको मिथ्याचार या राग-रंग अनुकूल नहीं पड़ता। जहाँ भोग-विलास है वहाँ खुदाका नाम ठीक तरहसे नहीं लिया जा सकता। यदि हम ऐसे भोग-विलासमें भाग न लें, तो भी उसका स्वाभाविक प्रभाव होता ही है। उसके निवारणमें जितनी शक्ति लगानी पड़ती है उतनी ही ईश्वर-भजनमें कमी रह जाती है। मैं यह प्रत्यक्ष अनुभव करता हूँ। यह लिखनेसे मेरा अभिप्राय यह बताना नहीं है कि मैं अपने लिए या किसी दूसरेके लिए सदा कारावासकी ही इच्छा करता हूँ या पहले दर्जेकी यात्रा सदा तथा सब परिस्थितियोंमें गलत है और जेलका सादापन और एकान्त हम सभीके लिए जरूरी है। किन्हीं खास सुविधाओंके लिए अथवा ऐसे ही अन्य कारणोंसे पहले दर्जेकी जरूरत हो तो उस परिस्थितिको छोड़कर, तीसरे दर्जेकी यात्राको मैं पसन्द करने लायक समझता हूँ। किन्तु मैं दक्षिण आफ्रिकामें बहुत-से कारणोंसे भारतीय लोगोंके लिए पहले और दूसरे दर्जे में यात्रा करना आवश्यक मानता हूँ। हमारे ऊपर कंजूसीका जो आरोप है वह हटना चाहिए। इसके अतिरिक्त हमारी तबीयत ऐसी बातोंमें बहुत सादगी-पसन्द है। इसलिए पहले और दूसरे दर्जेकी यात्रा ऐसी नहीं है कि हम उससे बहक जायें। जिन्होंने धन इकट्ठा किया है उनके लिए तो अपनी प्रतिष्ठाके कारण भी ऊँचे दर्जेमें यात्रा करना आवश्यक लगता है। अपनी महान लड़ाईकी इस घड़ीमें तो मैं बेधड़क होकर लिख सकता हूँ कि पहले दर्जेसे भी बड़े दर्जेकी यात्राके मुकाबले जेल-यात्रा हर भारतीयके लिए अच्छी है, ऐसा प्रत्येक भारतीयको मानना चाहिए।

हम कैसे रहते हैं

श्री हाजी हबीबका अनुभव मुझे आज पन्द्रह बरससे है। फिर भी उनके साथ रहनेका जैसा अवसर अब मिला है वैसा तो कभी मिला ही नहीं था। हाजी साहब धर्मनिष्ठ व्यक्ति हैं। वे अपनी सभी नमाजें नियमपूर्वक पढ़ते हैं। वे खाने-पीनेके धार्मिक नियमोंका पालन ठीक तरहसे करते हैं। उन्होंने मुझसे बहुत बार कहा है कि इस यात्रामें उनको धार्मिक नियमोंके पालनमें तनिक भी अड़चन मालूम नहीं हुई है। वे अपना भोजन सदा मुझे पसन्द करने देते हैं। उन्हें क्या दरकार है, यह मैं जानता हूँ। वे सुबह दलिया, अंडे और चाय; दोपहरको उबाले हुए आलू, कभी-कभी मछली, सलाद, लेटिस नामका मूली-जैसा शाक, कुछ पुडिंग, मेवे और काफी; और रातको कुछ शाक-सब्जी, पुडिंग, मेवे और काफी लेते हैं। वे बराबर यह सोचते रहते हैं कि शिष्टमण्डल सफल कैसे होगा और इस सम्बन्धमें हम बहुत बार सलाह-मशविरा किया करते हैं। उनके साथ जो घी और अचार-मुरब्बा बाँध दिया गया था, वह उन्होंने श्री भीखूभाईको दे दिया है। मैं जहाजके यात्रियोंपर यह छाप पड़ी देखता हूँ कि हम दोनों भाई-भाई हैं।

मैं अपने नियमके अनुसार दो समय भोजन करता हूँ। मैं पुडिंग छोड़ देता हूँ, क्योंकि उसमें अंडा होता है। मैं चाय और काफीको भी गुलामीके श्रमसे पैदा होने के कारण यथासम्भव नहीं लेता। मेरा शेष भोजन, मछलीके सिवा, लगभग ऊपरके मुताबिक है। ज्यों-ज्यों शरीर कसता जाता है, त्यों-त्यों मैं देखता हूँ कि अधिक सादे भोजनसे काम चलाया जा सकता है। पिछली यात्रामें शरीर जो स्वादिष्ट भोजन माँगता था, सो इस यात्रामें नहीं माँगता।