ये सब घटनाएँ सत्याग्रहकी जीत बताती हैं। सत्याग्रहके कष्टोंकी कहानी सभीमें सहानुभूति पैदा करती है। इसको सुनकर सब दाँतों तले अँगुली दबाकर रह जाते हैं और ताज्जुब करते हैं कि हमारे साथ अभीतक न्याय क्यों नहीं किया गया है।
इन लोगोंकी इस सहानुभूतिका आधार इनकी यह जानकारी है कि हम लोग सच्चे हैं और दिखावा नहीं करते। मैं श्री हाजी हबीबकी सहायतासे 'कसस्सुल अम्बिया'[१] नामकी पुस्तक पढ़ रहा हूँ। मैंने उसमें आजाजीलके सम्बन्धमें यह फरमान देखा कि अगर वह छः लाख बरस तक खालिककी इबादत करे, किन्तु एक बार सिजदा करनेसे इनकार कर दे, तो उसकी छः लाख सालकी इबादतपर पानी फिर जायगा। इसका एक मतलब यह है कि हमारे सच और झूठकी कसौटी हम अखीर वक्तमें जो कुछ करेंगे उससे होगी। दूसरा मतलब यह है कि हम ईश्वरसे कोई शर्त नहीं कर सकते। वह जैसे रखे, वैसे रहें। दस बार जेल जायें और ग्यारहवीं बार जेल न जायें तो दस बारका जेल जाना बेकार हो जायेगा और हमारी हँसी होगी।
इंडियन ओपिनियन, ७-८-१९०९
१७४. पत्र: मगनलाल गांधीको
यूनियन कैसिल लाइन
आर॰ एम॰ एस॰ 'केनिलवर्थ कैसिल'
जुलाई ९, १९०९
मदीरासे पत्र[२] लिखा है। यह पत्र आज रातको डाकमें डाला जायेगा। कल लन्दन पहुँचेंगे, इसलिए वहाँका हाल जाने बिना यह लिख रहा हूँ।
वहाँ वयस्कोंके लिए संस्कृत-वर्ग आरम्भ किया जाये तो अच्छा हो। मैं ज्यों-ज्यों पढ़ता हूँ त्यों-त्यों मुझे लगता है कि इस भाषाके ज्ञानकी प्रत्येक हिन्दूको आवश्यकता है। मेरी हिदायतें एकके-बाद एक बोझ बढ़ानेवाली हैं, यह खयाल बना रहता है; लेकिन मैं मजबूर हूँ। हमने अतीतमें इतना खोया है कि उसे फिर पानेमें और नियमित करनेमें कष्ट होगा और समय भी लगेगा पर जब हो सके तब इसे किये ही छुटकारा है—इस जन्ममें नहीं तो दूसरेमें सही। जबतक कामनाएँ रहती हैं, तबतक केवल परमार्थकी कामनाएँ रखें तो ठीक है। इन हिदायतोंमें से जिनपर अमल हो सके उनपर अमल करना और बाकीको याद रखना।