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१७६. भेंट: प्रेस एजेंसीके प्रतिनिधिको[१]

[लन्दन
जुलाई १०, १९०९]

श्री गांधीने आज इंग्लैंड पहुँचनेपर एक भेंटमें कहा कि मेरे यहाँ आनेका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संघ बननेपर ट्रान्सवालमें एशियाइयोंकी शिकायतें दूर कर दी जायेंगी और दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले सम्राट्के भारतीय प्रजाजनोंके दर्जेकी व्याख्या कर दी जायेगी, और वह संघीय संविधानमें शामिल कर ली जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-७-१९०९

१७७. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–३][२]

[जुलाई १०, १९०९ के बाद]

इंग्लैंड पहुँचे

मैं अपनी मदीरा तक की यात्राका विवरण बता चुका हूँ। हम दस [जुलाई] को साउदैम्टन पहुँच गये। वहां हमें रायटरका संवाददाता मिला।[३] उसको हमने संक्षेपमें स्थिति बताई और वह बहुत-से अखबारोंमें छप गई है। हम लन्दन लगभग प्रातः १०-३० बजे पहुँचे। किन्तु स्टेशनपर कोई नहीं था। इससे बड़ा अचम्भा हुआ। हम होटल सेसिलमें सामान रखकर श्री रिचसे मिलने गये। उनके पास श्री अब्दुल कादिर[४] बैठे थे। उन दोनोंको बड़ा

आश्चर्य हुआ। श्री रिचने कोई तार न मिलनेसे शिष्टमण्डलके रवाना होनेकी आशा छोड़ दी थी। बात यह हुई कि जोहानिसबर्गसे रायटरने [शिष्टमण्डलके बारेमें] तार भेजा था। वह अखबारोंमें छप ही जायेगा, यह खयाल करके श्री रिचको खास तार नहीं भेजा गया था। यहाँके अखबारोंमें रायटरके ट्रान्सवाल-सम्बन्धी समाचार इन दिनों बहुत कम छपते हैं। हमारी रवानगीका तार नहीं छपा। प्रतिनिधियोंकी गिरफ्तारीका तार छपा था। इससे श्री रिचने अनुमान किया कि शिष्टमण्डल भेजनेका विचार मुल्तवी कर दिया गया होगा। इसलिए किसीको हमारे आनेकी खबर नहीं थी।

  1. यह भेंट साउथ आफ्रिका असोसिएटेड प्रेस एजेंसीको दी गई थी। इसका संक्षिप्त विवरण इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागमें भी प्रकाशित किया गया था।
  2. गांधीजी १० जुलाई १९०९ को लन्दन पहुँच गये थे, और ये खरीते उन्होंने वहींसे लिखे। इंडियन ओपिनियन में मूल शीर्षक "शिष्टमण्डलकी यात्रा" से हो छपते रहे।
  3. देखिए "भट: रायटर के प्रतिनिधिको", पृष्ठ २७९।
  4. नेटाल भारतीयोंके शिष्टमण्डलके सदस्य। यह शिष्टमण्डल भी इन्हीं दिनों संघ विधेयकके अन्तर्गत नेटाल भारतीयोंके हितों की वकालत करने इंग्लैंड गया था।