पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/३१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८१
शिष्टमण्डलकी यात्रा [–३]


कार्य आरम्भ

किन्तु श्री रिचसे मिलनेके बाद खाना खाकर हमने तुरन्त कार्य आरम्भ कर दिया। हम दोनों भाई, श्री अब्दुल कादिर, श्री रिच और श्री हुसेन दाउद, जो श्री रिचके दफ्तर आ गये थे, सर मंचरजी भावनगरीके पास गये। वहाँ सलाह-मशविरा करनके बाद श्री रिचने लॉर्ड ऍम्टहिलको पत्र लिखा। मुलाकातें शुरू हुई। सारा दिन मिलने-जुलने और चिट्ठियाँ लिखनेमें जाता है, और रातको भी काम करना पड़ता है। कुमारी पोलक[१] खाली थीं, इसलिए उनको टाइप करनेका काम दिया है। वे खूब मेहनत करती हैं। रात या दिनका विचार नहीं करतीं। उनका स्वभाव भी अच्छा दिखाई देता है।

हम लॉर्ड ऍम्टहिल, सर रिचर्ड सॉलोमन[२] , कुमारी विंटरबॉटम[३] , श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, श्री कॉटन[४], न्यायमूर्ति श्री अमीर अली[५], डॉक्टर अब्दुल मजीद और श्री आजाद आदिसे मिले हैं। हमारी मुलाकात भारत कार्यालय (इंडिया ऑफिस) के सदस्य सर विलियम ली-वार्नर[६] और श्री मॉरिसनसे[७] भी हुई है। मैं अभी ज्यादा खबर नहीं दे सकता। परामर्श खानगी तौरसे होता है। उससे थोड़ी-बहुत आशा बँधती है। यदि इसमें सफल न हुए तो किसी दूसरी तरहसे काम बननेकी सम्भावना कम ही है। लॉर्ड ऍम्टहिल सोच रहे हैं कि शिष्टमण्डल ले जायें या नहीं और लेजानेसे क्या फायदा होगा।

मैं इतना तो देख सका हूँ कि जेल जानेकी बातको सब महत्त्व देते हैं; और यदि कुछ वजन पड़ता है तो इसी बातका कि बहुत से भारतीय जेल जा चुके हैं और अब भी जा रहे हैं।

हम सोच-समझकर तुरन्त कोई समाचार अखबारोंमें नहीं दे रहे हैं। लॉर्ड ऍम्टहिलकी सलाह है कि न दिया जाये।

लोक-नेताओंसे मिलनेके लिए यहाँ यह समय अनुकूल नहीं है। सभी लोग इस समय सैर-सपाटेके लिए शहरसे बाहर चले जाते हैं, इसलिए ज्यादा लोगोंकी सहायता मिलनी मुश्किल है। फिर, अंग्रेज लोग अपने ही मामलोमें बहुत ज्यादा उलझे हुए हैं। संसदमें नये बजटपर बहस हो रही है। इसके अलावा दक्षिण आफ्रिकाके जो अधिकारी आये हुए हैं, वे भी [लोगोंका] वक्त ले लेते हैं। इन सब बातोंपर विचार करते हुए और चारों ओर देखते हुए मुझे लगता है कि खानगी तौरपर जो कार्रवाइयाँ हो रही हैं, वे असफल हो गईं तो कुछ होना सम्भव नहीं है।

  1. एच॰ एस॰ एल॰ पोलककी बहन, कुमारी मोंड पोलक।
  2. ट्रान्सवालके लेफ्टिनेंट गवर्नर।
  3. फ्लॉरेंस विंटरबॉटम, लन्दनके नैतिकता समिति-संघ (यूनियन ऑफ ऐथिकल सोसाइटीज) की पत्र-व्यवहार सचिव।
  4. एच॰ ई॰ ए॰ कॉटन, इंडिया के सम्पादक।
  5. (१८४९-१९२८); प्रसिद्ध न्यायाधीश, बादमें प्रिवी कौंसिलके सदस्य, इस्लाम और इस्लामी कानूनपर कई पुस्तकोंके लेखक; देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२।
  6. (१८४६-१९१४); एक आंग्ल-भारतीय प्रशासक, वाइसरायकी परिषदके अतिरिक्त सदस्य, भारतपर कई पुस्तकोंके रचयिता।
  7. थियोडोर मॉरिसन; किसी समय अलीगढ़ मुहम्मडन कालेज के प्रिंसिपल; देखिए, खण्ड ६, पृष्ठ १६५।