पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८३
पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

सकता हूँ तब मुझे कितना आश्चर्य हुआ होगा। बेशक, मैं उसकी सहायता प्राप्त करके स्वभावतः ही बहुत प्रसन्न हुआ। साथ ही मुझे यह दुःख भी हुआ कि वह बेकार है। उसका खयाल है, और मैं सहमत हूँ, कि इस लाचारीके आरामसे शायद उसको कुछ लाभ हुआ है। उसे जो समय मिला उसका उचित उपयोग करनेकी क्षमता उसमें होती तो उसको अधिक लाभ हो सकता था। किन्तु जैसा उसने मुझे बताया, वह एकान्त पसन्द नहीं करती, और इससे बड़ा अन्तर पड़ जाता है। माताजी[१] और सैली[२] बेल्जियममें हैं। मालूम हुआ है कि वे अगले रविवारको लौटेंगी। मिली[३] २४ तारीखको आ जायेगी। उनकी रवानगीकी खबर तारसे मिली है। मैंने श्री रिचके नाम भेजा आपका तार देखा है; किन्तु जिसका मैं जिक कर रहा हूँ वह कैलेनबैकका है, और कल मिला था। इसमें भी आपकी भारत रवानगीकी सूचना दी गई है।[४]

कदाचित् यह आपके कामका पहलेसे अन्दाजा बाँधना होगा; लेकिन मैं जितना अधिक सोचता हूँ उतना ही अनुभव करता और देखता हूँ कि वहाँ [भारत] आपका काम हमारे यहाँके कामसे बहुत अधिक कठिन है। यहाँ भी सर कर्ज़न वाइली और डॉ॰ लालकाकासे[५] सम्बन्धित भयंकर और दुःखद घटनासे स्थिति जटिल हो गई है; किन्तु वहाँ जो उलझनें उत्पन्न होंगी उनकी तुलनामें यह जटिलता कुछ भी नहीं है। तो भी अगर आपको अपना हाथमें लिया हुआ कार्य सफल होता दिखाई न दे तो कृपया चिन्ता न कीजिए। सम्भव है, आप कोई सभाएँ न कर सकें, और वहाँके प्रभावशाली पत्र आपका बहिष्कार भी करें। मैं अभीसे यह नहीं सोचता कि इतना भयंकर परिणाम होगा ही; परन्तु मैं उसके लिए बिल्कुल तैयार हूँ और समयपर उसे सहन कर लूँगा। मुझे चिन्ता सिर्फ इस बातकी है कि आप लगभग सभी प्रमुख आंग्ल-भारतीयों और भारतीयोंसे मिल लें। यह आप कर सकेंगे, मैं जानता हूँ; किन्तु नेताओंसे एकान्त वार्ता करनेमें भी आपको जो कठिनाइयाँ झेलनी हैं, उनसे मैं पूर्णत: परिचित हूँ। आपको अपने सारे धैर्य और व्यवहार-कुशलताकी आवश्यकता होगी। फिर भी मुझे चिन्ता तनिक भी नहीं है। मैं यह पत्र जो इस तर्जमें लिख रहा हूँ, उसका उद्देश्य आपको सिर्फ यह बताना है कि मैं आपकी कठिनाइयोंको समझता हूँ, और इसलिए, यदि भारतीय शिष्टमण्डल अधिक फलप्रद नहीं होगा तो भी मैं किसी तरह निराश बिल्कुल न होऊँगा। आप अपना ध्यान फिलहाल उन लोगोंतक ही सीमित रखें जिनके नाम मैंने आपको खास तौरसे दिये हैं—अर्थात् 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के सम्पादक, प्रोफेसर गोखले और श्री मलबारी[६]

  1. पोलककी माँ।
  2. पोलककी दूसरी बहन।
  3. पोलककी पत्नी।
  4. पोलक ७ जुलाईको दक्षिण आफ्रिकी भारतीय समाजके प्रतिनिधिकी हैसियतसे जहाजसे भारतको रवाना।
  5. सर विलियम कर्ज़न वाइली भारत-मन्त्रीके राजनीतिक सहायक थे। इन्हें दक्षिण केन्सिंगटनकी इम्पीरियल इन्स्टिीट्यूटमें राष्ट्रीय भारतीय संघ (नेशनल इंडियन एसोसिएशन) द्वारा आयोजित एक स्वागत समारोह में मदनलाल धींगरा नामक एक भारतीय छात्रने गोळीसे भार दिया था। इनकी रक्षाका प्रयत्न करते हुए शंघाई के एक पारसी डॉक्टर कावसजी लालकाका घायल हो गये थे, बादमें उनकी भी मृत्यु हो गई।
  6. बहरामजी मेरवानजी मलबारी (१८५४-१९१२); कवि, पत्रकार और समाज-सुधारक।