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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गई थी। उससे उक्त प्रमाणपत्र रद हो गये और प्रत्येक भारतीय और एशियाईको एक दूसरा शिनाख्ती टिकट लेना अनिवार्य हो गया। उस कानूनमें दूसरी भी कई अत्यन्त आपत्तिजनक धाराएँ थीं, जिनको यहाँ बतानेकी जरूरत नहीं है। भारतीय बहुत क्षुब्ध हुए। उन्होंने निश्चय किया कि यदि यह कानून मंजूर किया गया तो वे इसका पालन नहीं करेंगे।

१८. (१९०६ के उत्तरार्धमें) एक शिष्टमण्डल इंग्लैंड आया, लॉर्ड एलगिनसे मिला और विधेयक (बिल) नामंजूर कर दिया गया।

१९. इसके बाद (१९०७ के शुरूमें) उत्तरदायी सरकार बनी। नई संसदका करीब-करीब सबसे पहला काम उक्त कानूनको केवल एक निरर्थक शाब्दिक परिवर्तनके साथ बहाल करना था। इस परिवर्तनसे कानूनकी आपत्तिजनक धाराएँ किसी भी तरह प्रभावित नहीं होती थीं। भारतीयोंकी आपत्तियोंके बावजूद यह जल्दीसे संसदमें पास कर दिया गया और इसपर २ मार्च १९०७ को सम्राट्की स्वीकृति मिल गई। जब यह कानून श्री डंकन द्वारा पेश किया गया था, तब यह कहा गया था कि यह अस्थायी होगा और इसकी जगह एक प्रवासी कानून बनाया जायेगा।

२०. किन्तु जब एक प्रवासी विधेयक (इमिग्रेशन बिल) भी पास कर दिया गया, और उसी अधिवेशनमें पास कर दिया गया, तब यह पता चला कि उससे एशियाई-विधेयक (अब कानून) रद नहीं होता, बल्कि उसे इस विधेयकसे जोड़कर देखनेपर नतीजा यह निकलता है कि घुमा-फिराकर भारतीयोंके प्रवासका पूरा निषेध हो गया है। इसलिए इन दोनों कानूनोंके मिलनेसे औपनिवेशिक कानूनके इतिहासमें पहली बार प्रवासके सम्बन्धमें रंग या जातिके आधारपर प्रतिबन्ध लगता है। (दोनों कानूनोंको जोड़कर पढ़नेसे भारतीय प्रवासका पूरा निषेध कैसे होता है, इसके लिए देखिए टिप्पणी 'ख'।)[१]

२१. जनवरी १९०८ में एशियाई कानून (१९०७ के कानून २) की धाराओंको लागू करनेके लिए सक्रिय कदम उठाये गये। भारतीयोंने अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार उसको माननेंसे इनकार कर दिया और उनके नेताओंपर मुकदमे चलाये गये तथा उनको कैदकी सजाएँ दी गई।

२२. 'ट्रान्सवाल लीडर' के सम्पादक श्री अल्बर्ट कार्टराइटके हस्तक्षेपसे एक समझौता हुआ। यह अंशतः लिखित और अंशतः मौखिक था। भारतीयोंका कहना है कि जनरल स्मट्सने, अपनी मर्जीसे शिनाख्त करा लेनेपर, एशियाई कानून वापस ले लेने और उनकी स्वेच्छया कराई गई शिनाख्तको एक दूसरे कानूनसे कानूनी रूप दे देनेका वचन दिया था। उनके विचारसे अच्छा यह होगा कि इसके लिए प्रवासी विधेयकमें, जो अब कानून बन गया है, संशोधन कर दिया जाये। (समझौतेके विस्तृत ब्योरेके लिए टिप्पणी 'ग' देखें।)[२] भारतीयोंने अवश्य ही समझौतेका अपना दायित्व पूरा कर दिया है, और तब अधिनियमको रद करनेकी माँग की है।

२३. सरकारकी ओरसे जनरल स्मट्सका कहना है कि उन्होंने कानूनको रद करनेका कोई वचन नहीं दिया था; हालाँकि वे यह मंजूर करते हैं कि उनके और श्री गांधीके बीच उसको रद करनेके सवालपर बातचीत हुई थी। उनका कहना है कि शायद श्री गांधीको गलतफहमी हो गई है।

  1. और
  2. देखिए पृष्ठ २९९-३००। इन्हें लॉर्ड ऍम्टहिलके सुझावोंके अनुसार जोड़ा गया था; देखिए परिशिष्ठ १४।