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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


२७. इस सम्मेलनके फलस्वरूप एक नया विधेयक पेश किया गया जिसमें स्वेच्छया पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) करानेवाले लोग एक अलग कानूनके अन्तर्गत रखे गये। कानूनको रद करनेके प्रश्नपर भी विचार किया गया; किन्तु सरकार इस प्रस्तावको सुननेके लिए तैयार नहीं थी; वह कहती थी कि कानून अमलसे बाहर समझा जायेगा। ऊँची शिक्षा पाये हुए भारतीयोंके प्रवेशके प्रश्नपर भी विचार किया गया; किन्तु प्रवासी कानूनके अन्तर्गत किसी तरहकी राहत देनेका वचन नहीं दिया गया। जनरल स्मट्सने बस इतना कहनेकी उदारता दिखाई कि ऐसे लोगोंको अस्थायी अनुमतिपत्र (परमिट) दे दिये जायेंगे।

२८. इसलिए इस सम्मेलनके परिणामपर विचार करनेके लिए (२० अगस्त, १९०८ को) एक दूसरी सार्वजनिक सभा बुलाई गई, और उसमें यह तय किया गया कि नये विधेयक (बिल) को तबतक स्वीकार न किया जाये, जबतक १९०७ का कानून २ रद नहीं किया जाता और उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंको शिक्षा सम्बन्धी और अन्य परीक्षाएँ—चाहे वे कितनी ही कड़ी क्यों न हों—पास करनेके बाद सामान्य प्रवासी कानूनके अन्तर्गत अधिकृत तौरपर प्रवेश करनेका हक नहीं दिया जाता।[१]

२९. किन्तु सरकारने भारतीयोंकी आपत्तिके बावजूद नये विधेयकको पास कर दिया। नये विधेयकमें कुछ दोष हैं, जिनको यहाँ बतानेकी जरूरत नहीं है। वे साम्राज्य सरकारको दिये गये एक अन्य प्रार्थनापत्रमें[२] गिनाये गये थे। उनके अलावा यह विधेयक सामान्यतः स्वीकार्य है।

प्रमुख प्रश्न

३०. नये विधेयक (बिल) से उत्पन्न कुछ छोटे-मोटे मुद्दोंके अलावा, ट्रान्सवाल सरकार और ब्रिटिश भारतीयोंके बीच प्रमुख प्रश्न ये हैं:

(१) सन् १९०७ के कानून २ को रद करना; और
(२) उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंका दर्जा।

३१. ट्रान्सवाल सरकारका कहना है कि ये दो मुद्दे स्वीकृत जैसे ही हैं, क्योंकि—

(१) सन् १९०७ का कानून २ अमलके बाहर समझा जायेगा, और
(२) उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय नये एशियाई विधेयककी एक धाराके अन्तर्गत अस्थायी अनुमतिपत्र (परमिट) प्राप्त कर सकते हैं, और इन अनुमतिपत्रोंको अनिश्चित समयतक बहाल रखा जा सकेगा।

३२. भारतीयोंका कहना है कि:

(१) यदि १९०७ का कानून २ अमलके बाहर समझा जायेगा तो उसको उपनिवेशकी विधान-संहिता (स्टैच्यूट बुक) में बनाये रखनेसे कोई उपयोगी उद्देश्य सिद्ध नहीं हो सकता। भारतीय (वादा-खिलाफियोंके कारण) शंकालु हो गये हैं और एक कानूनके अमल-बाहर होने और फिर भी देशके कानूनोंका भाग बने रहनेका मतलब उनकी समझमें नहीं आता। यदि कानून केवल मतदाताओंको सन्तुष्ट रखनेके लिए कायम रखा जा रहा है, तो वे चूँकि ज्यादा अक्लमन्द हैं, इसलिए उन्हें यह समझ

  1. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४५६-५९।
  2. देखिए "प्रार्थनापत्र: उपनिवेश मन्त्रीको", पृष्ठ. १७-२८।