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ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण
सकना चाहिए कि एक कानूनको अमल-बाहर उपनिवेशकी विधान-संहितामें जगह घेरनेकी कोई जरूरत नहीं है। और अन्तिम बात यह है कि सरकारने कानूनको अमल-बाहर घोषित तो कर दिया है, फिर भी जब-कभी सरकारको अनुकूल पड़ा है तब वह भारतीयोंके विरुद्ध अमलमें लाया जाता रहा है, और भविष्य में भी कभी उसके अमलमें लाये जानेमें कोई रुकावट नहीं है।
(२) यदि ट्रान्सवाल सरकार उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंको आने देनेके लिए रजामन्द है, तो वह उनको प्रवासी कानूनके अन्तर्गत भी आने दे सकती है। यदि सरकारका मंशा सब भारतीयोंको अपमानित करनेका नहीं है, तो सरकारके लिए इसका कोई महत्त्व नहीं है कि शिक्षित भारतीय एशियाई-कानूनके अन्तर्गत आते हैं या प्रवासी-कानूनके अन्तर्गत। भारतीयोंके लिए यह एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। प्रवेशका

तरीका ही उनके लिए सब-कुछ है। बीस या बीससे ज्यादा भारतीय ट्रान्सवालमें रियायतके चोर दरवाजेसे आयें और शर्तपर रिहा कैदीकी तरह सरकार जबतक चाहे तबतक उपनिवेशमें रहनेके अधिकारी हों, इसकी अपेक्षा उनको ज्यादा चिन्ता यह है कि एक ही शिक्षित भारतीय, जो उपनिवेशमें प्रवेश करे, सामान्य प्रवासी कानूनके अन्तर्गत और अधिकारके सिंहद्वारसे प्रवेश करे।

३३. शिक्षित भारतीयोंका यह प्रश्न सबसे पेचीदा है। ब्रिटिश भारतीयोंको ट्रान्सवालमें भर देनेकी कोई इच्छा है ही नहीं। भारतीय मानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश और बोअर आबादीकी प्रधानता रहनी चाहिए। किन्तु उनका कहना यह है कि उस नीतिपर अमल करके ट्रान्सवाल उपनिवेशको हमारा राष्ट्रीय अपमान न करने दिया जाये।

३४. इसके अलावा, जो भारतीय ट्रान्सवालके अधिवासी हैं, उन्हें यदि अपना सामाजिक और नैतिक स्तर ऊँचा करना है, तो अपने उच्च शिक्षा प्राप्त भाइयोंकी सहायताकी जरूरत उन्हें पड़ेगी ही। अपनी नेकनीयती साबित करनेके लिए वे घोषित करते हैं कि यदि प्रवासी- कानूनपर ऐसा अमल भी किया जाये कि किसी वर्ष-विशेषमें कमसे-कम (जैसे छः) भारतीय आ पायें तो भी उनको आपत्ति न होगी । जहाँ वे कानूनी असमानता और कानूनी भेदभावपर आपत्ति करते हैं, वहाँ वे प्रशासनिक भेदभावको सहन करनेके लिए तैयार हैं। यही बात आज आस्ट्रेलियामें की जा रही है। ट्रान्सवालमें यह उपर्युक्त शान्ति-रक्षा अध्यादेश (पीस प्रिज़र्वेशन ऑर्डिनेन्स) के अन्तर्गत किया गया था। उनका यह भी निवेदन है कि यदि वर्तमान कानूनसे पर्याप्त प्रशासनिक अधिकार नहीं मिलता है तो कानूनमें अभीष्ट दिशामें संशोधन किया जा सकता है, किन्तु इस तरह नहीं कि जिससे प्रजातीय भेदभाव स्थायी बन जाये।

नये संविधानमें

३५. यदि ब्रिटिश भारतीयोंको अन्ततः दक्षिण आफ्रिकासे निकाल बाहर नहीं करना है या वहाँसे उनका अस्तित्व मिटा नहीं देना है तो नये संविधानके अन्तर्गत उनकी स्थिति सावधानीसे सुरक्षित करनेकी जरूरत है। उनका लगभग कोई प्रतिनिधित्व नहीं। केप और नेटालमें उन्हें जो थोड़ा-बहुत प्रतिनिधित्व प्राप्त रहा है, उसका नये संविधानके अन्तर्गत कोई प्रभाव नहीं रहेगा। यदि साम्राज्यीय सत्ता समुचित रूपसे कायम न रखी गई तो दक्षिण आफ्रिकाका यूरोपीय संघ भारतीयोंके निहित हितोंको नष्ट कर देगा। ऑरेंज रिवर कालोनीमें भारतीयोंको