नौकर-चाकरोंके अलावा किसी अन्य रूपमें प्रविष्ट नहीं होने दिया जाता। ट्रान्सवालमें उपर्युक्त कानून तो लागू है ही, उनका अपने लिए विशेष रूपसे निर्धारित बस्तियोंके अलावा कहीं दूसरी जगह जमीन खरीदनेका अधिकार भी छीन लिया गया है; और बस्तियोंमें जमीन खरीदनेके इस अधिकारपर भी रोक लगा दी गई है। नेटालमें उपनिवेशके परवाना कानूनके एकांगी और अत्याचारपूर्ण प्रशासनके द्वारा भारतीय व्यापारियोंको भूखों मारा जा रहा है। छोटी-मोटी शिकायतें तो दक्षिण आफ्रिका-भरमें इतनी ज्यादा हैं कि उन्हें विस्तारसे दिया नहीं जा सकता। वे भारतीयोंके दैनिक जीवनको प्रभावित करती हैं, और उन्हें लगातार यह याद दिलाकर, कि इस उपमहाद्वीपमें चमड़ेका रंग भूरा होना गुनाह है, उनका जीना प्रायः दूभर कर देती हैं। दक्षिण आफ्रिकामें कानून बनानेके पीछे साफ-साफ यह मंशा होता है कि जिस अनुपातमें युरोपीय जातियोंकी स्वतन्त्रतामें वृद्धि की जाये, उसी अनुपातमें भारतीयों की स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगाये जायें।
३६. इसलिए, साम्राज्यके खयालसे भी और भारतीय दृष्टिकोणसे भी यह बात सर्वोपरि महत्त्वकी है कि ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके प्रश्नको सन्तोषजनक रूपसे हल किया जाये। इस बातमें कोई शक नहीं कि ट्रान्सवाल दक्षिण आफ्रिकाका प्रमुख राज्य है। वह नेतृत्व करता है; अन्य राज्य उसका अनुसरण करते हैं। इसलिए यदि ट्रान्सवालके भारतीयोंसे सम्बन्ध रखनेवाले कानूनोंको दृढ़ और न्यायपूर्ण आधारपर पहले ही स्थित नहीं किया जाता, तो संघके अन्तर्गत निश्चय ही ट्रान्सवालके कानूनोंका अनुसरण किया जायेगा, और तब साम्राज्य- सरकार राहत देनेमें असमर्थ होगी।
भारतीयोंकी प्रतिज्ञा
३७. इसके अतिरिक्त, भारतीय उपर्युक्त राहत प्राप्त करनेके लिए एक गम्भीर प्रतिज्ञासे बँधे हुए हैं—भले ही इसके लिए उन्हें अनिश्चित काल तक जेल भोगनी पड़े या और भी ज्यादा कष्ट उठाना पड़े। इसके फलस्वरूप पिछले ढाई वर्षके संघर्षमें २,५०० से अधिक लोंगोंको कारावास मिला और उनमें से अधिकांशका कारावास सपरिश्रम था। जेलका जीवन सर्वथा असह्य रहा है। भारतीय कैदियोंको और दक्षिण आफ्रिकी वर्तनियोंको एक वर्गमें और एक साथ रखा जाता है। भारतीयोंका दो तिहाई भोजन भी वही होता है जो वतनियोंका है। ट्रान्सवालमें राजनीतिक अपराध-जैसी कोई चीज ही नहीं है। भारतीय कैदियोंको, जिन्हें स्वयं जनरल स्मट्सने अन्तरात्माकी आवाजके आधारपर आपत्ति करनेवाले बताया है, बुरेसे-बुरे अपराधियोंके साथ जेलमें रखा जाता है। उनसे जैसे श्रमकी अपेक्षा की जाती है वह सामान्यत: कठोर प्रकारका होता है। जिन भारतीयोंने कभी भारी बोझा नहीं उठाया या कठोर परिश्रम नहीं किया, उनसे बुरेसे-बुरे काफिर कैदियोंके साथ-साथ भारी सामानसे लदे ठेले खींचने, गड्ढे खोदने और सड़कोंकी मरम्मत करने-जैसे काम लिये जाते हैं।
३८. अनेक भारतीय परिवार कंगाल बना दिये गये हैं। कई परिवार छिन्न-भिन्न हो गये हैं। और बहुत से परिवार, जिनके कमाऊ सदस्य ट्रान्सवालकी जेलोंमें पड़े हैं, अब अपने दैनिक निर्वाहके लिए सार्वजनिक दानपर निर्भर हैं।
३९. कुछ समयसे सरकारने पुर्तगाली अधिकारियोंके साथ एक गुप्त समझौता करके उन लोगोंको, जो एशियाई कानूनकी धाराओंका पालन नहीं करते और जिनके विरुद्ध कानूनकी निर्वासन-सम्बन्धी धाराओंके अन्तर्गत कार्रवाई की जा सकती है, भारतको निर्वासित करना आरम्भ