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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दक्षिण आफ्रिकामें हमारा कोई अधिकार ही नहीं है। ऐसा हो तो देशी राजाओंके अत्याचारोंके विरुद्ध इतना शोर होना ही नहीं चाहिए। हत्यारे—चाहे वे काले हों या गोरे—भारतमें राज्य करेंगे तो उससे कोई लाभ नहीं होगा। ऐसे राज्यमें भारत वीरान और नष्टभ्रष्ट हो जायेगा। इससे बहुत से विचार उत्पन्न होते हैं। किन्तु मुझे उनको यहाँ लिखनेका समय नहीं है। मुझे डर है कि कुछ भारतीय इन हत्याओंकी सराहना करेंगे। मेरे विचारसे वे महापाप करेंगे। ऐसी समझ छोड़ देनी चाहिए। विशेष बादमें।

"सफ्रेजिस्ट"[१]

इंग्लैंडकी महिलाओंके मताधिकारके लिए लड़नेवाली स्त्रियाँ गजब कर रही हैं। वे किसी तरहके दुःखसे नहीं डरती हैं। उनमें से कितनी ही स्त्रियाँ बीमार पड़ गई हैं, फिर भी लड़ना नहीं छोड़तीं। कितनी ही स्त्रियाँ श्री एस्क्विथको अपना आवेदनपत्र देनेके विचारसे रोज रात-रात-भर संसद भवनके द्वारपर खड़ी रहती हैं। यह कुछ कम वीरता नहीं है। कितना प्रबल होगा उनका विश्वास? बहुत-सी स्त्रियाँ इस आन्दोलनमें बर्बाद हो गई हैं। और होती जा रही हैं। किन्तु वे अपनी लड़ाई बन्द नहीं करतीं। यह लड़ाई हमारी लड़ाईसे पुरानी है। हम इससे बहुत कुछ नसीहत और हिम्मत ले सकते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १४-८-१९०९

१८१. पत्र : लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

लन्दन, एस॰ डब्ल्यू॰
जुलाई २०, १९०९

निजी सचिव


उपनिवेश मन्त्री


महोदय,

दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति (साउथ आफ्रिका ब्रिटिश इंडियन कमिटी) के मन्त्री श्री रिच परम माननीय उपनिवेश-मन्त्रीको ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे एक शिष्टमण्डलके आने की सूचना दे चुके हैं।

इसमें प्रिटोरियाके व्यापारी और वहाँकी अंजुमन इस्लामियाके अध्यक्ष श्री हाजी हबीब और मैं—दो प्रतिनिधि हैं। अन्य प्रतिनिधि[२] रवाना होनेसे पहले एशियाई पंजीयन अधिनियम (एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट) के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिये गये थे और अब जेलमें हैं।

मेरे साथीने और मैंने जानबूझ कर लॉर्ड महोदयसे मुलाकात नहीं माँगी है, क्योंकि हम इस वक्त साम्राज्य सरकारको कष्ट दिये वगैर उस कठिन समस्याका समाधान प्राप्त करनेका प्रयत्न कर रहे हैं, जिसको लेकर हम यहाँ आये हैं। लेकिन चूँकि दक्षिण आफ्रिकी अधिनियमके

  1. इंग्लैंडमें स्त्रियोंके संसदीय मताधिकारके लिए लदनेवाली स्त्रियाँ।
  2. अ॰ मु॰ काछलिया और वी० ए० चेट्टियार; देखिए पृष्ठ २८९।