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पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको


लॉर्ड ऍम्टहिल और उनके सहयोगियोंके उस आन्दोलनसे सम्बद्ध होनेकी खबर मुझे नहीं है, जिसे आप "भारतका भयंकर आन्दोलन"[१] कहते हैं। इसके सिवा, अनाक्रामक प्रतिरोधियोंपर अपने अन्तःकरणके अतिरिक्त किसी औरकी मर्जी नहीं चलती। वे न्यायत: जिस बातके अधिकारी हैं, उसे हस्तगत करनेके लिए शपथ-बद्ध हैं, और उसे पानेके लिए व्यक्तिगत कष्टोंको किसी भी सीमा तक सहन करनेके लिए तैयार हैं—मृत्यु भी इस सीमाके बाहर नहीं है। सच्चे सत्याग्रहकी कसौटी अपना बलिदान है, दूसरोंका नहीं।

[आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-८-१९०९

१८४. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
जुलाई २२, १९०९

प्रिय हेनरी,

मुझे कोई बहुत अचरजका समाचार नहीं देना है। श्री अमीरअली, जो सर रिचर्डसे मिले थे, कल होटल आये थे और कुछ आशान्वित दिखाई देते थे। सर विलियम ली-वार्नर और श्री मॉरिसन[२] भी होटल आये थे; परन्तु वे केवल सच्ची स्थिति समझना चाहते थे।

मैं इसके साथ लॉर्ड ऍम्टहिलके एक पत्रकी नकल भेज रहा हूँ। पत्र काफी स्पष्ट है। मैंने उपनिवेश-मन्त्रीसे और भारत-मन्त्रीसे भी व्यक्तिगत भेंटकी प्रार्थना की है। आजके 'मॉर्निंग पोस्ट' में इस आशयका एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ है कि भेदभावपूर्ण एशियाई कानूनका नियन्त्रण गवर्नर जनरल और परिषदके हाथोंमें होगा, प्रान्तीय परिषदोंके हाथोंमें नहीं। मैं नहीं जानता कि इसका अर्थ क्या है; इसका अर्थ बहुत कुछ भी हो सकता है और कुछ भी नहीं हो सकता।

श्री मेरीमैन, जिनके पत्रका उल्लेख लॉर्ड ऍम्टहिलने किया है, कहते हैं कि वे इस इच्छाको प्रकट कर देनेके अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकेंगे कि दक्षिण आफ्रिकी राजनयिक जिन उदार सिद्धान्तोंको माननेका दावा करते हैं उनके विपरीत कोई कानून न बनाया जाना चाहिए। हम स्टेडसे[३] मिल चुके हैं। उन्होंने भी जनरल स्मट्ससे मिलनेका वादा किया है। हम दूसरे जिन लोगोंसे मिले हैं उनके नाम देकर आपको परेशान करने की जरूरत नहीं है। जब यह पत्र आपके पास पहुँचेगा, तबतक व्यक्तिगत बातचीतका परिणाम प्रकट हो चुकेगा। इसलिए मैं उसका पूर्वाभास देना नहीं चाहता।

  1. स्पष्ट ही अभिप्राय भारतमें आतंकवादी कार्रवाइयोंसे है।
  2. थियोडोर मॉरिसन, जो कभी अलीगढ़के मुस्लिम कॉलेजके प्रिंसिपल थे; देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १६५।
  3. डब्ल्यू॰ टी॰ स्टेड (१८४९-१९१२); प्रसिद्ध पत्रकार और रिव्यू ऑफ रिव्यूज़के सम्पादक ।
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