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सम्पूर्ण गांभी वाङ्मय


मुझे भरोसा है कि आप अपने भारत पहुँचनेका तार दे देंगे। खेद है कि आप जिस जहाजसे भारत जानेवाले हैं उसका नाम मुझे मालूम नहीं है। किन्तु मैं दफ़्तरीको एक तार[१] भेज रहा हूँ, ताकि वह पहलेसे कुछ इन्तजाम कर रखे।

मिली यहाँ परसों आ जायेगी। माताजीने तो मकान भी किरायेपर ले लिया है। उसमें दो सोनेके कमरे और एक बैठक है। किराया एक पौंड प्रति सप्ताह है। उनको वहीं ठहराया जायेगा; लेकिन वे लोग खाना माताजीके साथ खायेंगे। यह व्यवस्था मुझे बहुत उपयोगी मालूम होती है। इससे मिलीको पूरा आराम मिल जायेगा। अभी मौसम बहुत अच्छा है और बच्चोंके लिए बहुत ही अनुकूल सिद्ध होना चाहिये।

मेरा खयाल है कि मैं आपको प्रो॰ भाण्डारकरका[२] नाम बताना भूल गया। आप जानते ही हैं, वे आजके एक सबसे बड़े संस्कृत-पण्डित हैं। मुझे विश्वास है कि आप पूना जायेंगे, तब आपको उनसे अवश्य मिलना चाहिए। उनको इस प्रश्नपर उनके एकान्तवाससे विरत भी कर सकते हैं। कुछ भी हो, आपका उनसे सम्पर्क स्थापित करना अच्छा ही होगा। आप श्री नाजरके[३] लड़केसे भी मिलें। उसका ठिकाना गिरगाँव है।

मैं आपको उन लोगोंके नामोंकी सूची भेज रहा हूँ जो ऑटोमन संसदीय शिष्टमण्डलकी दावतमें शामिल हुए थे। समारोह शानदार था; लेकिन मैं उससे बहुत दुःखी होकर चला आया। दावतके कमरेमें बहुत भीड़ थी। दावतमें तीन घंटे लगे। शराबके गिलासोंमें से उठनेवाली भाप और लगभग ३०० अतिथियोंके सिगारों या सिगरेटोंके धुएँका मनपर बहुत बुरा असर पड़ा। मेरे मुँहसे आप ही आप निकल पड़ा—"सभ्य बर्बरता "। और उससे मेरे सामने कवियों द्वारा वर्णित राक्षसी-भोजोंका दृश्य उपस्थित हो गया।

गत सप्ताह मामलेका जो विवरण[४] आपको भेजा गया था, वह अभी प्रकाशित नहीं हुआ है। संक्षिप्त विवरणका[५] संशोधन कर दिया गया है। मैं इसके साथ उसकी एक नकल भेजता हूँ, और प्रो॰ गोखलेको लिखे अपने पत्रकी[६] नकल भी।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९५६) से।

 
  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. डॉ० रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकर (१८३७-१९२५); महान प्राच्य विद्याशास्त्री, संस्कृतके विद्वान्, समाज और धर्मके सुधारक, धार्मिक और ऐतिहासिक विषयोंपर अनेक पुस्तकोंके लेखक।
  3. मनसुखलाल हीरालाल नाजर, इंडियन ओपिनियनके प्रथम सम्पादक और गांधीजीके सहयोगी; उनकी मृत्यु १९०६ में हुई; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ १८७-९०।
  4. देखिए "ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण", पृष्ठ २८७-३००।
  5. देखिए "पत्र: अखबारोंको", पृष्ठ ५२२-२४।
  6. ऐसा मालूम होता है कि यह अगले दिन भेजा गया था और उसपर तारीख भी उसी दिनकी दी गई थी। देखिए अगला शीर्षक।