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१८५. पत्र : गो॰ कृ॰ गोखलेको

लन्दन, एस॰ डब्ल्यू॰
जुलाई २३, १९०९

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

जबतक यह पत्र आपके पास पहुँचेगा, श्री पोलक भारतमें होंगे। यहाँ हमारा कार्य बहुत कठिन है; किन्तु यह आपके लिए कोई नई खबर न होगी। मैं इसका उल्लेख केवल भूमिकाके रूपमें करता हूँ, ताकि मैं आपसे इस ओर विशेष ध्यान देनेका समय निकालनेकी प्रार्थना कर सकूँ।

मुझे इसकी बहुत चिन्ता है कि हमारे नेता इस संघर्षके राष्ट्रीय महत्त्वको समझें। श्री पोलक यह कार्य करनेके लिए एक मिशनरी कार्यकर्त्ताक रूपमें भेजे गये हैं। हम ट्रान्सवालमें तबतक कष्ट भोगते रहेंगे, जबतक न्याय नहीं मिलता; किन्तु हम मातृभूमिसे अबतक जितना प्राप्त कर चुके हैं उसकी अपेक्षा बहुत अधिककी उम्मीद करनेके हकदार हैं।

श्री पोलकका काम बहुत कठिन है। मैंने उनसे कहा है कि वे पूर्णत: आपके निर्देशानुसार चलें; और मैं जानता हूँ कि आप उनके कार्यको यथाशक्ति हलका करनेमें कोई कोर-कसर न रखेंगे। हम व्यक्तिगत बातचीतके द्वारा समझौता करनेका प्रयत्न कर रहे हैं; किन्तु मैं श्री स्मट्सको इतनी अच्छी तरह जानता हूँ कि मुझे इस बातचीत में अधिक विश्वास नहीं है। हम शायद एक सप्ताहमें खुली कार्रवाई करने के लिए बाध्य हो जायेंगे और यदि हमें कोई काम करना हो तो उस अवस्थामें यह बिलकुल जरूरी हो जायेगा कि भारत हमारी प्रार्थनाका समर्थन करे। क्या मैं आपसे आशा कर सकता हूँ कि आप जो-कुछ आवश्यक समझेंगे वह करेंगे?[१]

मैं इसके साथ एक अधिक लम्बे विवरणका संक्षेप, जो हमने तैयार किया है, भेज रहा हूँ। यदि बातचीत असफल होती है तो उसका परिणाम प्रकट होते ही यह संक्षिप्त विवरण गांधी प्रकाशित कर दिया जायेगा।

हृदयसे आपका
मो॰ क॰ गांधी

माननीय प्रोफेसर गोखले, एम॰ एल॰ सी॰
पूना

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी॰ एन॰ ४११०) से।

  1. श्री पोल्कने प्रोफेसर गोखलेसे लम्बी चर्चा की थी और अपने १४ अगस्तके पत्रमें गांधीजीको लिखा था—"वे (प्रोफेसर गोखले) कोई बड़ी उम्मीद नहीं रखते लेकिन उन्होंने अपनी सारी शक्ति और संस्था उनके सहयोगमें दे दी है। सभाकी आवश्यकता वे स्वीकार करते हैं। उन्होंने सर फीरोजशाह मेहतापर भी जोर डालनेका वादा किया है, जो जरा रुकावट डाल रहे हैं। उन्होंने मेरो यात्राका मार्ग भी आंका है—बम्बई, पूना, सूरत, बड़ौदा, अहमदाबाद, मद्रास, कलकत्ता, यू॰ पी॰ आदि। वे भविष्यमें सारी व्यवस्था करेंगे। बहुत अद्भुत व्यक्ति हैं। उन्हें तथ्यों और मूल सूत्रोंका बढ़ा सही ज्ञान है। आपके बड़े प्रशंसक हैं। अत्यधिक कार्य, चिन्ता और मलेरियासे वे बहुत क्षीण हो गये हैं।"