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शिष्टमण्डलकी यात्रा [–४]


ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय ढाई वर्षोसे ट्रान्सवाल सरकारसे प्रार्थना कर रहे हैं कि वह १९०७ के एशियाई पंजीयन अधिनियम (एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट) को रद कर दे और इस प्रकार उससे उनका जो अपमान होता है उसको समाप्त कर दे, तथा उन उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंके दर्जेका खयाल रखे जो ब्रिटिश परम्पराके अनुसार और केप ऑफ गुड होप तथा अन्य ब्रिटिश उपनिवेशोंमें चालू तरीकेसे ट्रान्सवालमें प्रवेश पानेके इच्छुक हैं।

मैं नम्रतापूर्वक आशा करता हूँ कि लॉर्ड महोदय हमें ऐसा मौका देनेकी कृपा करेंगे जिससे हम स्वयं उनके सामने मामलेको रख सकें और इस प्रकार उस उद्देश्यको पूरा कर सकें जिसके लिए ट्रान्सवालके भारतीय समाजने हमें यहाँ विशेष रूपसे भेजा है।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल; कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: सी॰ डी॰ ५३६३ और दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४९५८) से।

१८९. शिष्टमण्डलकी यात्रा[१] [–४]

[जुलाई २४, १९०९]

मेरा खयाल है कि मैं गत सप्ताह सर विलियम ली-वार्नर और श्री मॉरिसनसे, जिस होटलमें हम ठहरे हैं उसमें अपनी भेंटकी बात लिख चुका हूँ। उन्होंने सहानुभूति प्रकट की। उसके बाद हम मेजर सैयद हुसेन बेलग्रामीसे मिले। उन्होंने मंजूर किया है कि जितना उनसे हो सकेगा उतना प्रयत्न करेंगे। कुमारी विंटरबॉटमकी मार्फत श्रीमती टीडमैन नामक एक महिलासे भी मिले। इस महिलाने एक डचसे ब्याह किया है। श्री टीडमैन वहाँके एक डच अखबारमें काम करते हैं और जनरल बोथा आदिको जानते हैं। उन्होंने बताया है कि वे जनरल बोथासे मिलेंगे। हम एक पत्रकार श्री ब्राउनसे भी मिले। इन्होंने पिछली बार (१९०६में) हमारी सहायता की थी।

श्री भेदवार नामके एक पारसी हैं। उनके सम्मानमें पारसी अंजुमनने एक भोज दिया था, उसके अध्यक्ष सर मंचरजी थे। उस समारोहमें हम भी निमन्त्रित थे। उसमें भारतीयोंने हमें सहायता देनेके सम्बन्धमें भाषण दिया। हम दोनोंको और श्री रिचको इस विषयमें दो शब्द कहनेका समय दिया गया था।

हमने 'रिव्यू ऑफ रिव्यूज़' के सम्पादक श्री स्टेडसे भेंट की। उनका श्री स्मट्ससे अच्छा सम्पर्क है। उन्होंने कहा है कि वे श्री स्मट्ससे मिलेंगे।

हम भारत-कार्यालय (इंडिया ऑफिस) के सदस्य श्री गुप्तसे और नवाब इमदुल मुल्क सैयद हुसेन बेलग्रामीसे मिले। हमने उनको सारी स्थिति समझाई है।

  1. इंडियन ओपिनियन में इसका और आगेके खरीतोंका शीर्षक बदल कर "इंग्लैंड जानेवाले शिष्टमण्डलकी यात्रा " कर दिया गया था, क्योंकि उन्हीं दिनों "भारत जानेवाले शिष्टमण्डलफी यात्रा" शीर्षकसे एक दूसरी विवरण-माला भी प्रकाशित होने लगी थी। लेकिन, वह माला हम दे रहे हैं, इसलिए यहाँ गांधीजी द्वारा दिया गया खरीतेका मूल शीर्षक ही रखा गया है।