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१९०. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
जुलाई २६, १९०९

लॉर्ड महोदय,

मैं आपके इसी २४ तारीखके पत्रके लिए आभारी हूँ।

मैं श्री सावरसे उत्तर न मिलनेका वह अर्थ नहीं लगाता जो आपने लगाया है,[१] क्योंकि मैंने उनको यह सूचना मात्र दी थी कि आप उनको सम्भवतः पत्र लिखेंगे। इसलिए मुझे लगता है कि वे अब भी सुनने-समझनेको वैसे ही तैयार हैं, जैसा कि मैंने उन्हें जहाजमें पाया था। मैंने आपको बताया था कि श्री सावर श्री मेरीमैनसे अधिक उत्साहमें हैं।

श्री हाजी हबीब और मैं लॉर्ड मॉर्लेसे खानगी भेंट करके अभी-अभी लौटे हैं। लॉर्ड महोदयने हमारी बातपर सहानुभूतिसे विचार किया और कहा कि वे लॉर्ड क्रू को लिखेंगे; और मेरे कहनेपर उन्होंने श्री स्मट्ससे इस प्रश्नपर बातचीत करना स्वीकार कर लिया। लॉर्ड क्रू ने अभी भेंटका समय नहीं दिया है; किन्तु उन्होंने हमसे कहा है कि भेंटमें हमें जिन मुद्दोंपर चर्चा करनी है उनको हम लिखकर भेज दें। जिस पत्रमें ये बातें दी गई थीं वह शनिवारको चला गया।[२]

सर रिचर्ड सॉलोमनने एक गोपनीय पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने कहा है कि वे सारे प्रश्नपर श्री स्मट्ससे बातचीत कर चुके हैं, किन्तु श्री स्मट्स सम्मेलनके कार्य में बहुत व्यस्त रहेंगे इसलिए उनको निर्णय करने में कुछ समय लग सकता है। मैं श्री स्मट्सको बहुत अच्छी तरह जानता हूँ; इसलिए यह विलम्ब कुछ अशुभ है, क्योंकि जिन मित्रोंने दिक्कत-तलब मामलों में उनसे प्रार्थना की है उनको उन्होंने अनेक बार टाला है। लॉर्ड मॉर्ले और, अगर लॉर्ड क्रूने मंजूर कर लिया तो, उनसे भी भेंटके अलावा हम कोई लिखित विवरण पेश करना ठीक समझें तो एक छोटा विवरण बिलकुल तैयार है।[३] मैंने उसे प्रचारित करनेके लिए छपाया नहीं है; क्योंकि बातचीत चल रही है। किन्तु बातचीत चलनेसे हमारे ऊपर

  1. लॉर्ड ऍम्टहिलने सोचा था कि उस दिशामें काम करनेसे उन्हें लाभ नहीं हो सकता।
  2. देखिए "पत्र: उप-उपनिवेश-मन्त्रीको", पृष्ठ ३१०-११।
  3. गांधीजीने मामलेका एक विवरण तैयार कर भी लिया है, यह बात शायद लॉर्ड ऍम्टहिलको मालूम न थी; इसीलिए उन्होंने अपने २४ जुलाई के पत्र में यह सुझाव दिया था कि गांधीजी "साम्राज्य सरकार और उपनिवेशी सरकारोंके अधिकारियोंको देने के लिए तथा सामान्य जनताकी जानकारी के लिए अपने मामलेका एक बहुत संक्षिप्त और स्पष्ट विवरण तैयार कर लें। यह दस्तावेज अवश्य ही बहुत संक्षिप्त हो और यदि मैं सलाह दूँ तो मैं कहूँगा कि आप अपनी माँगके समर्थनमें जो कारण दें उनमें अधिक जोर इस बातपर हो कि इस झगड़े के लिए सबको खेद है और इसलिए इसका अन्त करना जरूरी है तथा यह भी वांछनीय है कि ट्रान्सवालके भारतीय दक्षिण आफ्रिका के संघीकरणकी आम खुशीमें हिस्सा ले सकें। फिर आप इस वक्तव्यको महामहिम सम्राटकी सरकार के मंत्रियोंको, इस देशमें आये हुए उपनिवेशी प्रतिनिधियोंको और अखबारोंको भेज सकते हैं।" देखिए, "ट्रान्सवाडवासी भारतीयों के मामलेका विवरण", १४ ३८७-३००।