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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जबानबन्दी भले ही लागू होती हो, इस कार्यमें जो हमारे मित्र हैं उनपर तो वह लागू नहीं हो सकती। यदि आप या अनेक लोक-नेता मिलकर लॉर्ड क्रू को लिखें और उनसे ट्रान्सवालके मन्त्रियोंपर अपना सत्प्रभाव डालनेका अनुरोध करें तो क्या हमारा उद्देश्य सिद्ध न हो जायेगा? लॉर्ड क्रू ट्रान्सवालके मन्त्रियोंसे कहें कि जिन ब्रिटिश भारतीयोंने आपके देशके लिए इतने भारी और इतने भीषण कष्ट सहे हैं उन्हें छोटी-मोटी रियायतें देकर अपने संघ-निर्माणको गौरव प्रदान कीजिए।[१]

श्रीमानने शायद ध्यान दिया होगा कि मूल निवासी-संरक्षण संघ [ऐवॉरिजिन्ज़ प्रोटेक्शन सोसाइटी] की ओरसे एक शिष्टमण्डल दक्षिण आफ्रिकी प्रधानमंत्री और अन्य लोक-नेताओंसे मिलनेवाला था और वह केवल इसलिए नहीं मिला कि सर चार्ल्स डिल्क[२], जो शिष्टमण्डलका नेतृत्व करनेवाले थे, उन लोगों द्वारा नियत समयको स्वीकार नहीं कर सके।

मुझे निश्चित लगता है कि यदि आप अब भी श्री मेरीमैन और श्री सावरसे, या उनसे न हो सके तो, श्री बोथा और स्मट्ससे बातचीत करनेका प्रयत्न करें, तो इससे हित ही हो सकता है। मैं यह भी कह दूँ कि समझौता करना बहुत-कुछ सर जॉर्ज फेरार[३] और सर पर्सी फिट्ज़ पैट्रिकके[४] हाथमें है और यदि आप उनसे मिल भी सकें तो मुझे विश्वास है कि समस्याके सन्तोषजनक हलका कोई मार्ग निकल आयेगा।

मैं 'इंडियन ओपिनियन' के नये अंककी ओर आपका ध्यान विशेष रूपसे आकर्षित करता हूँ। उसमें तीन उल्लेखनीय प्रार्थनापत्र[५] और भारतीय शिष्टमण्डल-सम्बन्धी तथ्य दिये गये हैं। आशा है, श्रीमान अपना इतना समय लेनेके लिए मुझे क्षमा करेंगे।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९६०) से।

 
  1. ता. २८ जुलाईके पत्रमें इसका उत्तर देते हुए लॉर्ड ऍम्टहिलने लिखा था: "मेरे खयालमें मेरा यह कहना ठीक है कि दक्षिण आफ्रिका-विधेयक (बिल) को बदलनेका कोई सवाल नहीं है। इस समस्यापर बिलकुल प्रभाव नहीं पड़ता। जरूरत इतनी ही है कि ट्रान्सवाल-सरकार दयाके विशिष्ट कार्य के रूप में इस कठिनाईका अन्त करने और भारतीयों की शिकायत दूर करनेका इरादा घोषित करके संसद में विधेयककी स्वीकृतिको गौरवान्वित करे।"
  2. सर चार्ल्स वॅटवर्थ डिक (१८४२-१९११); राजनीतिज्ञ, लेखक, संसद सदस्य और उप-विदेश मन्त्री, १८८०-०२।
  3. (१८५९-१९१५); खान-मालिक और ट्रान्सवालके विधायक; दक्षिण आफ्रिकी युद्ध (१८९९-१९००) में सेवा की।
  4. (१८६२-१९३१); एक खान-व्यवसायी और दक्षिण आफ्रिका-सम्बन्धी कई पुस्तकोंके लेखक; सर जॉर्ज फेरार और वे ट्रान्सवालके प्रगतिवादी दलके प्रमुख सदस्य थे।
  5. ये ट्रान्सवालवासी भारतीयों द्वारा सम्राज्ञी, दादाभाई नौरोजी तथा बंगाल चैम्बर ऑफ कॉमर्सके अध्यक्षको भेजे गये थे। देखिए परिशिष्ट १५।