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१९१. पत्र: लॉर्ड मॉर्लेके निजी सचिवको

लन्दन, एस॰ डब्ल्यू॰
जुलाई २६, १९०९

निजी सचिव


परममाननीय भारत-मन्त्री
व्हाइट हॉल, एस॰ डब्ल्यू॰


महोदय,

यदि आप नीचेका [पत्रांश] लॉर्ड मॉर्लेकी सेवामें पेश कर दें तो मैं आभारी होऊँगा:

लॉर्ड महोदयने श्री हाजी हबीबको और मुझे जो खानगी मुलाकात[१] देनेकी कृपा की थी उसमें, समयाभावके कारण, मैं जो कहना चाहता था वह सब नहीं कह सका। इसलिए मैं अपने साथीकी तथा अपनी ओरसे कहना चाहता हूँ कि भारतीय समाज और ट्रान्सवाल सरकारके बीच जो दो प्रश्न—अर्थात्, एशियाई कानुनका रद किया जाना और शिक्षित ब्रिटिश भारतीयोंके दर्जेका जो आधार अन्य उपनिवेशोंमें है उसी आधारपर उसे कायम रखना—अभीतक अनिर्णीत हैं, वे भारतीय समाजकी पवित्र प्रतिज्ञाके कारण सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि ब्रिटिश भारतीय ट्रान्सवालमें अन्य निर्योग्यताओं—जैसे, जमीनकी मिल्कियत रखने और ट्रामोंमें सवार होनेपर लगी रोक आदि—के बारेमें अपने आपको पीड़ित अनुभव नहीं करते।

फिर भी हमारा खयाल है कि भारतीय समाजने जेलखानोंमें जो सज़ा काटी या अन्य व्यक्तिगत कठिनाइयाँ सही हैं, सो इन सवालोंको तय करानेके लिए उतनी नहीं जितनी कि उपर्युक्त दोनों शिकायतोंको दूर करानेके लिए। लेकिन ब्रिटिश भारतीय अन्य निर्योग्यताओंको दूर करानेके लिए उन्हीं साधनोंको काममें लाते रहेंगे जिन्हें उन्होंने अबतक अपनाया है। परन्तु उपर्युक्त दोनों शिकायतें अन्य शिकायतोंसे अलग कर दी गई हैं, क्योंकि इनसे उन्हें भयंकर कष्ट हुआ है और जबतक कोई ठीक समझौता नहीं हो जाता तबतक यह कष्ट होता रहेगा।

मुझे और मेरे साथीको भरोसा कि लॉर्ड मॉर्ले इस मामलेकी ओर विशेष ध्यान देनेका समय निकाल सकेंगे और जिन लोगोंके हित उनके सुपुर्द हैं, उनकी ओरसे अपना मैत्रीपूर्ण प्रभाव काममें लाकर सम्माननीय समझौता करा सकेंगे।

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल: कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स (सी॰ डी॰ ५३६३) से; टाइपकी हुई दफ्तरी प्रति (एस॰ एन॰ ४९६१) से भी।

 
  1. यह उसी दिन इससे पहले हो चुकी थी, देखिए पिछला शीर्षक।