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१९२. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–५]

[ जुलाई २६, १९०९ के बाद]

इस हफ्ते में मुलाकातें बहुत कम हुई हैं। ज्यादातर समय चिट्ठियाँ लिखनेमें और फुटकर लोगोंसे मिलने गया है।

मुख्य मुलाकात

मुख्य मुलाकात[१] लॉर्ड मॉलेंसे हुई। हम दोनोंको उन्होंने निजी रूपमें मुलाकात दी। यह कहना मुश्किल है कि उनका उत्तर सन्तोषजनक मानना चाहिए या नहीं। मैं तो इतना ही लिख सकता हूँ कि उन्होंने सहायता करनेका वचन दिया है।

लॉर्ड ऍम्टहिल सख्त मेहनत कर रहे हैं। उनका कार्य खानगी है, इसलिए मैं कुछ बताता नहीं। उनको पुरी आशा है कि समझौता होगा। उनके साथ हमेशा पत्र-व्यवहार चलता रहता है। अब क्या होता है, यह देखना रहा है। उनके पत्रको पढ़नेसे मालूम होता है कि अगले हफ्ते कुछ खबर मिल जायेगी। यदि ऐसा हुआ तो तारसे खवर जायेगी, इसलिए इस लेखके छपनेसे पहले परिणाम शायद मालूम हो जायेगा।

यदि परिणाम अच्छा निकले तो किसीको यह न समझना चाहिए कि यह इंग्लैंडमें जोर लगानेका ही परिणाम है। इसका कारण तो केवल जेल जाना ही समझना चाहिए। जो लोग यहाँ रहते हैं, वे यह बात सहज ही देख सकते हैं। जेलकी बात सुननेवाला प्रत्येक गोरा ताज्जुब करता है। सहन किये हुए कष्टोंका गम्भीरतम प्रभाव हुए बिना रह ही नहीं सकता। मुझे तो बार-बार यह अनुभव होता रहता है।

श्री हाजी हबीब, श्री अब्दुल कादिर और मैं निमन्त्रण पाकर कुमारी स्मिथके पास गये थे। वहाँ सभी एक ही बात कर रहे थे, अर्थात् जेल जानेकी। और जेल जानेकी बात सुननेका ही असर होता था। मैं दिन-प्रतिदिन ऐसा वक्त आता देखता हूँ, जब मनुष्यको, फिर वह चाहे काला हो या गोरा, अजियोंसे न्याय नहीं मिल सकेगा। यदि यह बात ठीक हो तो आत्मबल अर्थात् सत्याग्रहके बलको पहुँचनेवाला दूसरा बल संसारमें है ही नहीं। इसलिए मेरी इच्छा है कि यदि यह पत्र छपने तक फैसला न हुआ तो भारतीय जेलोंको भर दें।

नौ अगस्तको बहुत-से भारतीय भाई छूटे होंगे। उन सबसे मेरी प्रार्थना है कि वे निर्भय होकर फिर जेल जायें। उन्होंने जो प्रण किया है, उसे न छोड़ें। संसारमें आज ऐसी ही हवा चल रही है। छोटे और बड़े सबमें देशभक्तिकी भावना प्रबल हो रही है। इस भावनाके कारण बहुत-से बुरे काम किये जाते हैं। जो सत्याग्रहका आश्रय लेंगे वे ही सच्ची देशभक्ति दिखा सकेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-८-१९०९
  1. यह २६ जुलाईको हुई थी। देखिए "पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको", पृष्ठ ३१३-१४।