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पत्र: लॉर्ड ऍस्टहिलको

जिसे उन्हें पास करना होगा। मेरा खयाल है कि मैंने यह सारी स्थिति सर रिचर्ड सॉलोमनको साफ-साफ समझा दी है और यह भी सोचता हूँ कि वे इसे समझ गये हैं।

इसमें शक नहीं कि ट्रान्सवालमें दूसरी शिकायतें भी हैं; मिसालके तौरपर जमीन-जायदाद रखनेपर रोकके बारेमें, ट्रामोंमें बैठनेके बारेमें आदि। इस सम्बन्धमें हमें स्थानीय अधिकारियोंको और आपको भी सहायता के लिए कष्ट देना होगा। लेकिन जिन दो शिकायतोंको लेकर शिष्टमण्डल लन्दन आया है उनमें और दूसरी शिकायतों में यह फर्क है कि इन दो शिकायतोंको लेकर अनाक्रामक प्रतिरोध किया गया है, जिसमें हमें अवर्णनीय कष्ट हुए हैं और जबतक ये शिकायतें दूर नहीं कर दी जातीं या उन्हें दूर करानेके प्रयत्नमें एक-एक भारतीय मर नहीं जाता, तबतक, जहाँतक मेरे वशकी बात है, वह जारी रहेगा और हम कष्ट सहते रहेंगे। दूसरी शिकायतें बहुत पुरानी हैं, उन्हें दूर कराने के लिए हमने कष्ट सहनेकी कोई गम्भीर प्रतिज्ञा भी नहीं की है। इसलिए हम उसके लिए तबतक रुक सकते हैं जबतक इस मामलेमें लोकमत तैयार नहीं हो जाता और लोगोंमें जो विद्वेष है वह मिट नहीं जाता। इसके लिए न हम कंगाल बनेंगे और न ट्रान्सवालकी जेलोंको भरेंगे।

मेरे लिए तो यह अनाक्रामक प्रतिरोधमें आपकी बहुत बड़ी दिलचस्पीकी...[१] और—मैं कहनेकी इजाजत चाहता हूँ—आपके उदात्त विचारों...[२] की भी कसौटी है। आप मुझे यह कहनेके लिए क्षमा करेंगे कि मैं यहाँ, दक्षिण आफ्रिकामें, या भारतमें ऐसे एक भी भारतीयको नहीं जानता जिसने राजद्रोहका—उसको मैं जिस रूपमें समझता हूँ—मेरी जैसी दृढ़ता, बल्कि ललकारके साथ, विरोध किया हो। राजद्रोहसे दूर रहना मेरे धर्मका अंग है। मेरी जान चली जाये तो भी मेरा इससे कोई सम्बन्ध न होगा। बहुत-से लोग, अर्थात् बहुत-से भारतीय और आंग्ल-भारतीय, बमबाजी और हिंसाके विरुद्ध अपनी तीव्र घृणा शब्द-रूपमें या किसी बेजा कार्रवाईके रूपमें प्रकट करते हैं। लेकिन ट्रान्सवालमें जिस आन्दोलनसे मेरा तादात्म्य है वह आन्दोलन तो स्वतः ऐसे तरीकोंके खिलाफ सबसे जोरदार और स्थायी आपत्ति है। अनाक्रामक प्रतिरोधकी कसौटी स्वयं कष्ट सहना है, दूसरोंको कष्ट देना नहीं। इसीलिए हमने भारतके, या किसी दूसरी जगहके किसी भी "राजद्रोही दल" से एक पैसा भी नहीं लिया है और अगर हम अपने सिद्धान्तोंके प्रति सच्चे हैं तो हमें ऐसी सहायता मिलती तो भी हम उसे स्वीकार करनेसे इनकार कर देते। हमने अबतक भारतीय जनतासे रुपये-पैसेकी सहायता न माँगनेका खास खयाल रखा है। ब्रिटिश भारतीय संघका हिसाब सभी देख सकते हैं। उसका आय और व्ययका विवरण समय-समयपर प्रकाशित और 'इंडियन ओपिनियन' में विज्ञापित किया जाता है।[३] श्री डोक, श्री फिलिप्स[४] और ट्रान्सवालमें हमारे साथ काम करनेवाले दूसरे प्रमुख व्यक्ति इस बातको बहुत अच्छी तरह जानते हैं। मैं यह कहनेकी अनुमति चाहता हूँ कि अनाक्रामक प्रतिरोधकी कल्पनाका जन्म दक्षिण आफ्रिकामें हुआ है और उसका भारतके किसी आन्दोलनसे कोई

 
  1. यहाँ कुछ शब्द मिट गये हैं।
  2. यहाँ एक पंक्ति मिट गयी है ।
  3. देखिए खण्ड ७, परिशिष्ट ७।
  4. चार्ल्स फिलिप्स, ट्रान्सवालके चर्चेके पादरी।