सम्बन्ध नहीं है। इनके अलावा हमपर, कभी-कभी विशुद्ध अनाक्रामक प्रतिरोधमें विश्वास रखनेके कारण, हमारे कुछ भारतीय मित्रोंने तीव्र आक्षेप भी किये हैं।
आशा है, आप मुझे इतनी निजी बातें कहने और इस पत्रका कलेवर बढ़ानेके लिए क्षमा करेंगे, क्योंकि यह अनिवार्य था।
अगर इससे ज्यादा खुलासेकी या जानकारीकी जरूरत हो तो आप मुझे उसके लिए आदेश दें। मैं [वह देकर][१] आपके प्रति और भी ज्यादा आभारी हूँगा।
श्री रिच बताते हैं कि इस स्पष्टीकरणसे आपकी समझमें सब बातें साफ-साफ न आयेंगी। वे इतना और जोड़नेका सुझाव देते हैं।
प्रवासी कानूनमें काले या गोरे सभी प्रवेश करनेवाले लोगोंके लिए शिक्षा परीक्षा रखी गई है। परीक्षा कितनी कड़ी हो, यह बात प्रवासी-अधिकारीकी मर्जीपर छोड़ दी गई है। सबके लिए एक परीक्षा न कभी रही है और न अब ही है। इसलिए प्रवासी-अधिकारी यूरोपीयोंके लिए एक परीक्षा रखता है और भारतीयोंके लिए दूसरी। वह शायद कभी-कभी यूरोपीयोंकी कोई परीक्षा ही नहीं लेता जैसा कि नेटालमें प्रायः होता है। इस तरह अपने विवेकाधिकारसे काम लेनेमें अदालतें कोई दस्तन्दाजी नहीं करतीं। जनरल स्मट्सने कहा है कि मौजूदा प्रवासी-कानूनमें प्रवासी अधिकारीकी मर्जीपर इतनी ज्यादा बातें नहीं छोड़ी गई हैं। अगर नहीं छोड़ी गई हों तो कानून आसानीसे बदला जा सकता है और उसके विवेकपर जितनी बातें छोड़ना आवश्यक हो, छोड़ी जा सकती हैं। मैंने श्री डैलोकी[२] मार्फत ऐसा एक सुधार दे भी दिया है। मेरी रायमें उससे यह उद्देश्य सन्तोषजनक रूपसे पूरा हो जायेगा। श्री स्मट्सने मेरा सुधार नामंजूर नहीं किया; लेकिन उन्होंने कहा था कि वे उस अधिवेशनमें (पिछले जूनके अधिवेशनमें) कानूनमें फेरफार करना वाञ्छनीय नहीं समझते। प्रवासी अधिकारीको आवश्यक अधिकार मिलनेपर शिक्षा परीक्षाके अनुसार केवल छ: भारतीयोंको ही देशमें आने देना है। अगर सातवाँ भारतीय अर्जी दे तो वह उसे उसकी ऐसी शिक्षा परीक्षा लेकर रद कर सकता है, जिसमें परीक्षार्थी पास ही न हो सके। आस्ट्रेलियामें ऐसा ही किया जाता है।
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९६८) से।