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१९५. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
जुलाई ३०, १९०९

प्रिय हेनरी,

पिछले हफ्ते ज्यादा लोगोंसे नहीं मिल पाया, फिर भी काम बहुत हो गया है। लॉर्ड ऍम्टहिल बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, उनका सम्पर्क एक ओर सर जॉर्ज फेरार, जनरल स्मट्स और लॉर्ड सेल्बोर्नसे रहा और दूसरी ओर लॉर्ड क्रू, लॉर्ड मॉर्ले, लॉर्ड लैन्सडाउन और लॉर्ड कर्जनसे। वे स्वयं बहुत आशावान मालूम होते हैं। मैं आपको उनके नाम प्रेषित अपने लम्बे पत्रकी[१] नकल भेजता हूँ।

सर मंचरजीने भी स्मट्सको भेंटके लिए पत्र लिखा था और स्मट्सने वचन दिया है कि वे अपने ऊपर कामका बोझ कम होते ही उनको भेंटका समय देंगे। यह भेंट तब माँगी गई थी जब यह मालूम नहीं था कि लॉर्ड ऍम्टहिल क्या निश्चित कार्रवाई कर रहे हैं। बड़े पैमानेपर सार्वजनिक आन्दोलन आरम्भ करनेकी व्यवस्था भी की गई थी। मैंने उसकी रूपरेखा अपने मस्तिष्कमें बना ली है; किन्तु लॉर्ड ऍम्टहिलके कामको देखते हुए सब बातें रुकी हुई हैं।[२]

हमने लॉर्ड मॉर्लेसे सोमवारको भेंट की थी। उन्होंने हमें लगभग आधे घंटेका समय दिया। सर चार्ल्स लायल[३] भेंटके समय मौजूद थे। यह भेंट व्यक्तिगत और अनौपचारिक थी। वे यह जानना चाहते थे कि क्या इस मामले में भारतमें बहुत आवेश है। मैंने जवाब दिया कि बहुत है। मैंने यह भी कहा कि बम्बईमें सभा नहीं हुई, इसका कारण यह है कि सर फीरोजशाहको हिंसात्मक कार्रवाईका भय था। किसीको भी सभामें आने और कड़े भाषण देनेसे रोका नहीं जा सकता था। मेरी रायमें इस प्रश्नसे प्रकट होता है कि भारतमें बहुत आवेश है; इसके बारेमें वे असन्तुष्ट हैं या वे चाहते हैं कि समस्त भारतमें लोकमतकी जोरदार अभिव्यक्ति हो। फिर भी उन्होंने वचन दिया है कि वे इस भेंटका सार लॉर्ड क्रू को बता देंगे और स्मट्ससे भी मिलेंगे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लन्दनमें जनरल स्मट्सकी उपस्थितिकी भी जानकारी उनको न थी और वे एशियाई अधिनियमपर की गई आपत्तियोंके बारेमें सब-कुछ भूल गये थे।

उधर, यदि लोग सभाएँ बुलाएँ तो आप सभाएँ करें; यदि ऐसा न हो तो विभिन्न संस्थाओंकी ओरसे प्रार्थनापत्र भिजवायें और यदि आपको पर्याप्त स्वयंसेवक मिल सकें तो आप एक संक्षिप्त प्रार्थनापत्रपर हजारों लोगोंके हस्ताक्षर करायें। आशा है, आपने दादाभाई

 
  1. देखिए पिछला शीर्षक।
  2. देखिए परिशिष्ट १६।
  3. (१८४५-१९२०); आंग्ल-भारतीय प्रशासक।
९-२