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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाँदीके तमगे दिये गये। इन स्त्रियोंके लिए एक भोजकी व्यवस्था की गई है, जिसमें एक-एक शिलिंगके टिकट जारी किये गये हैं।

इस सभाकी अध्यक्षता श्रीमती लॉरेंस नामकी महिलाने की थी। भाषण सब स्त्रियोंने ही दिये। सारी व्यवस्था भी वे ही करती हैं।

जेल जानेवाली स्त्रियोंमें दो-चार तो बीस-बाईस बरसकी लड़कियाँ थीं। ये सभी मताधिकारकी लड़ाई में गिरफ्तार की गई थीं। यहाँकी प्रथाके अनुसार कैदियोंके कई वर्ग हैं। इन स्त्रियोंको दूसरा वर्ग दिया गया था। ये कहती हैं कि हमें पहले वर्गका कैदी माना जाना चाहिए। ऐसा सरकारने नहीं किया, इसलिए उन्होंने संगठित होकर जेलके नियमोंको भंग करनेका निर्णय किया। उन्होंने जेलकी कोठरियोंकी खिड़कियाँ तोड़ीं और दूसरे नियमोंको माननेसे भी इनकार कर दिया। इससे उनको काल-कोठरियोंमें बन्द कर दिया गया। वहाँ भी उन्होंने जेलरोंकी आज्ञाओंका अनादर किया। अन्तमें सभी स्त्रियोंने खाना बन्द कर दिया। एक स्त्रीने छः दिन तक बिलकुल भोजन नहीं किया और कुछ दूसरी स्त्रियोंने पाँच दिन तक। इस प्रकार सबने खाना छोड़ दिया। इससे अन्तमें सरकारने हार मानकर उनको रिहा कर दिया। स्त्रियाँ इससे निराश हुई हैं और कहती हैं कि जबतक ऐसी स्त्रियोंको पहला वर्ग नहीं दिया जायेगा तबतक वे जेल जाती रहेंगी। जेलसे रिहा स्त्रियों में से दोपर जेलमें मारपीट करनेके जुर्ममें पुलिसने सभामें समन्स तामील किये। जब उनको समन्स दिये गये तब सारा सभाभवन तालियों और हर्ष-ध्वनिसे गूँज उठा। उन स्त्रियोंके ऐसे कष्टसहन और उनकी ऐसी हिम्मतके आगे भारतीय सत्याग्रही किस गिनतीमें है?

यह संघ अपना अखबार प्रति सप्ताह प्रकाशित करता है और उसकी ५०,००० प्रतियाँ छपती हैं। उसका मूल्य एक पेनी है। उसमें कार्यकर्त्री मुख्यतः स्त्रियाँ हैं। बेचनेके लिए स्वयंसेविकाएँ हर हफ्ते निकलती हैं। इनको कोई मजदूरी नहीं मिलती। ये सभी स्त्रियाँ बड़े-बड़े घरानोंकी हैं; फिर भी इस काममें शरमानेके बजाय गर्व मानती हैं। ये सभी अपनी बाँहोंपर "स्त्रियोंके लिए मताधिकार" (वोट फॉर वीमन) के छपे बिल्ले लगाकर निकल पड़ती हैं।

इसके अलावा उन्होंने बहुत-सी चौपतियाँ आदि छापी हैं। कितनी ही स्त्रियाँ इस काममें अपना सर्वस्व देकर खुद भी काम करने लग गई हैं। इनमें से कुछ बहुत पढ़ी-लिखी हैं। ये एक सालमें चन्देसे ३,००० पौंड इकट्ठा कर लेती हैं। उन्होंने २०,००० पौंड इकट्ठा करनेका निश्चय किया है।

उनकी लड़ाईको पाँच बरस होने आये। लड़ाईकी नींव तो बहुत बरस पहले पड़ चुकी थी। किन्तु जेल जाकर पूरा जोर पाँच सालसे लगाया जा रहा है। इस असमें लगभग ५०० स्त्रियाँ जेल हो आई हैं। इनमें से कितनी ही एकसे ज्यादा बार जेल जा चुकी हैं। [इस मण्डलकी] सभी पदाधिकारी कैद भुगत आई हैं। वे प्रयत्नपूर्वक जेल जाती हैं।

इतने बरस हो गये पर वे हार नहीं मानतीं। दिनों-दिन उनका जोर बढ़ता ही जाता है। वे सरकारको हैरान करनेकी नई-नई युक्तियाँ खोज लेती हैं और बहुत-सी स्त्रियोंने इस कामके लिए अपने-आपको पूरी तरह समर्पित कर दिया है। कितनी तो जानतक देनेके लिए तैयार हो गई हैं। "जीतना ही है", यह उनका प्रण है। वे ऐसी दृढ़ता बता रही हैं मानो यह प्रण उनकी मृत्युके साथ ही जायेगा।

उनकी काम करनेकी व्यवस्था और चतुराई अत्यन्त सराहनीय है। उनमें उत्साह खूब है। इस सबको देखकर बहुत-से पुरुष चकित रह गये हैं।