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पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

कर रहे हैं। स्वर्गीय सर विलियम विल्सन हंटरने[१] इस प्रथाको खतरनाक रूपमें गुलामीसे मिलता-जुलता बताया था।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-९-१९०९

१९९. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[ लन्दन ]
अगस्त ४, १९०९

लॉर्ड महोदय,

मैं आपको इसी ३ तारीखके पत्रके लिए और उन कीमती सुझावोंके लिए धन्यवाद देता हूँ जो आपने विवरण (स्टेटमेंट)[२] के सम्बन्धमें दिये हैं।

मैं जानता हूँ कि अधिकारियोंपर कामका कितना भार है; और यह जानते हुए कि आप उनको यह प्रश्न समझानेका कोई अवसर हाथसे नहीं जाने देते, श्री हाजी हबीब और मैं, दोनों सन्तोषपूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं।

आपका प्रश्न यह था कि क्या अनाक्रामक प्रतिरोध (पैसिव रेजिस्टेन्स) के लिए भारतसे धन या उत्तेजन मिलता है। "उत्तेजन मिलने" के सम्बन्धमें, मैंने विस्तारसे कुछ नहीं कहा था। पत्र लम्बा और ऊबानेवाला हो जानेके भयसे मैं लिखता-लिखता रुक गया था। परन्तु, अब चूँकि आपने कृपा करके मुझे अपने विचार अधिक विस्तारसे प्रकट करनके लिए कहा है, इसलिए मैं प्रसन्नतापूर्वक इस अवसरका लाभ उठाता हूँ। मैं भली भाँति जानता हूँ कि हमपर यह आरोप लगाया जा रहा है कि हम भारतके गरमदलसे मिलकर काम कर रहे हैं [३] लेकिन मैं आपको पूरा-पूरा विश्वास दिलाता हूँ कि यह आरोप बिलकुल निराधार है। ट्रान्सवालमें भारतीयोंका अनाक्रामक प्रतिरोध उस उपनिवेशमें ही पैदा हुआ है और भारतमें जो कुछ कहा या किया जा रहा है उस सबसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। कभी-कभी सच बात तो यह रही है कि भारतमें या अन्यत्र जो विरोधी बातें कही या लिखी गई, उनके बावजूद हमने अपना आन्दोलन जारी रखा है। हमारे आन्दोलनका भारतके किसी भी उग्रदलसे बिलकुल वास्ता नहीं मैं खुद उग्रदलियोंको नहीं जानता।...[४] मुस्लिम लीगके...[५] हैं और किसी समय अखिल इस्लामी संघ (पैन इस्लामिक सोसाइटी) के लन्दन स्थित मन्त्री रहे हैं, और यह पत्र-व्यवहार

  1. (१८४०-१९००) भारतीय प्रशासक और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश कमेटी के सदस्य; देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९६ और खण्ड ६, पृष्ठ २६०।
  2. देखिए "ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण", पृष्ठ २८७-३००; तथा लॉर्ड ऍम्टहिलके सुझावोंके लिए परिशिष्ट १४ भी।
  3. देखिए परिशिष्ट १४।
  4. बिन्दुओंके स्थानपर मूलमें कुछ शब्द गायब हैं।
  5. यहाँ मूल पत्रमें एक पंक्ति कट गई है।