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२०३. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
अगस्त ६, १९०९

प्रिय हेनरी,

मैं आज आपको एक तार[१] भेज रहा हूँ। अबतक इसलिए नहीं भेजा गया कि मैं एक-दो शब्दोंको सांकेतिक बनाकर कुछ शिलिंग बचा लेना चाहता हूँ। यद्यपि मिलीने मुझे बताया कि वे आपको एक तार भेजनेका वादा कर चुकी थीं, मैंने विवेकका उपयोग करके सीधे तार नहीं भेजा और यह आप पर छोड़ दिया कि आप दफ्तरीको भेजे गये तारसे[२] उनके आनेका अनुमान लगा लें। मिली अपने विषय में विस्तारसे आपको लिखेंगी ही, इसलिए मैं इस पत्र में अधिक नहीं लिख रहा हूँ। मैं इसके साथ विवरण (स्टेटमेंट) भेज रहा हूँ। इसमें कई परिवर्तन और संशोधन हुए हैं। इसे अब भी अन्तिम रूप नहीं मिला है और न यह बाँटनेके लिए ही है। लॉर्ड ऍम्टहिल इन चीजोंके बारे में बहुत ही सतर्क हैं। जबतक बातचीत चल रही है, वे नहीं चाहते कि इस तरफ किसी प्रकारकी सार्वजनिक कार्रवाई की जाये। वे अगले सोमवारको जनरल स्मट्ससे मिलेंगे। हमें लॉर्ड क्रू से अगले मंगलको मिलना है। इसलिए अगले हफ्तेमें अवश्य यह तय हो जायेगा कि हमें आगे यहाँ किस तरह काम करना है। जो भी हो, जबतक निश्चित समझौता न हो जाये, आपके कामपर यहाँकी कार्रवाईका असर नहीं पड़ना चाहिए और यदि समझौता हो जाये तब भी, मेरा खयाल है, आपको वहाँकी यात्राका पूरा लाभ उठाना चाहिए। सारे भारतमें घूमकर सभी नेताओंसे मिलना चाहिए और उन्हें वस्तुस्थिति बतानी चाहिए। समझौता हो जानेपर यदि आप एक पुस्तिका[३] प्रकाशित करायें जिसमें समस्त दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके कष्टोंका इतिहास हो तो बुरा न होगा। यह पुस्तिका मेरी 'हरी पुस्तिका' (ग्रीन पेम्फलेट[४]) की तरहकी हो सकती है। मेरा खयाल है, वह आपके पास है ही। मिलीसे मुझे मालूम हुआ है कि वे हर हालत में करीब एक साल तक लन्दन में रहेंगी ही। मैं खुद भी समझता हूँ कि उन्हें ऐसा ही करना चाहिए। मेरा खयाल है, कि आप कमसे-कम ३ महीने भारतमें रहेंगे। यदि आवश्यक हो तो कांग्रेस अधिवेशनके लिए भी रुक जाइए। फिर भी, सम्भव है कि यहाँके कामकी प्रगतिके अनुसार

  1. ये उपलब्ध नहीं हैं।
  2. ये उपलब्ध नहीं हैं।
  3. पोलकने अपने २१ अगस्त के पत्र में लिखा था: "मैंने दक्षिण आफ्रिकाके कष्टोंके बारेमें पुस्तिका तैयार कर ली है। इसे मैंने पहले ही जहाज़पर लिख लिया था। जबतक समझौता न हो जाये मैं उसमें टान्सवालकी समस्या के सिवा और कुछ नहीं लिख रहा हूँ।" यह पुस्तिका अक्तूबर १९०९ में जी॰ ए॰ नटेसन, मद्रास द्वारा इस शीर्षकसे प्रकाशित की गई थी: दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय: साम्राज्य में गुलामोंकी स्थिति और उनके साथ व्यवहार। पोलकने ट्रान्सवालकी समस्यापर एक और पुस्तिका भी लिखी जिसका शीर्षक था: ट्रेजेडी ऑफ एम्पायर: ट्रीटमेन्ट ऑफ ब्रिटिश इंडियन्स इन ट्रान्सवाल।
  4. इसका शीर्षक था, दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतें: भारतीय जनतासे अपील। देखिए खण्ड २, पृष्ठ १-५९।