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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसमें रद्दोबदल करना पड़ेगा। यदि कोई समझौता न हो तो आप अपनी शक्ति केवल ट्रान्सवालके प्रश्नपर ही केन्द्रित कीजिए। दूसरे विषय छेड़कर जनताका ध्यान न बँटाइए। मैंने आपको लॉर्ड ऍम्टहिलके पत्रोंकी नकलें जान-बूझकर नहीं भेजीं। फिर भी जो पत्र मैंने उन्हें लिखे हैं उनकी नकलें भेज रहा हूँ। इनसे आपको मालूम होगा कि यहाँ क्या हो रहा है और हमपर क्या आरोप लगाये जा रहे हैं।

आपका तार समयपर मिल गया था। आशा है आप जिन लोगोंसे मिलते हैं वे आपके साथ अच्छा बर्ताव करते होंगे, और उन्होंने आपके निवासके लिए उपयुक्त स्थान खोज दिया होगा।

आप 'बम्बई गज़ट' के कार्यालयमें किसी पुस्तकालयमें १३ जुलाईका 'गज़ट' देख लीजिए। उसमें हमारे संघर्ष पर एक लम्बा सम्पादकीय प्रकाशित हुआ है। जान पड़ता है कि वह लेख किसीके कहनेसे लिखा गया है और उसमें खुद मुझसे अनुरोध किया गया है कि मैं अपनी कार्रवाई भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रखूँ।[१] वह लेख बहुत सहानुभूतिपूर्ण है। आपको उसे पढ़नेकी कोशिश करनी चाहिए। मुझे वह कुमारी स्मिथने दिखाया था। उसकी कतरन मैं जोहानिसबर्ग भेज रहा हूँ। हाँ, जब भी समय मिले, आप वहाँके सार्वजनिक पुस्तकालयोंमें जानेकी कोशिश कीजिए और श्री वेलिनकरसे[२] परिचय कर लीजिए। वे एक बड़े शिक्षा-शास्त्री हैं। मेरा खयाल है, मैंने आपसे उनके बारेमें बात की थी। मैं उनके नाम परिचयकी कोई चिट्ठी आपको नहीं भेज रहा हूँ, क्योंकि मेरा खयाल है, अब आपको उसकी जरूरत नहीं होगी।

श्री डैलोने 'यार्कशायर डेली ऑब्ज़र्वर' को लिखे अपने पत्रमें आपका उल्लेख इस प्रकार किया है: "यह देखकर कि न्यायके आधारपर साम्राज्य सरकारको प्रेरित करके भारतीयोंके दुःख दूर करानेके हमारे सारे प्रयत्न विफल हो गये हैं, भारतीय नेताओंने अपने एक गोरे हमदर्दको इस आशासे भारत भेजा है कि इससे भारतीयोंका ध्यान उनके कष्टोंके प्रति जागृत होगा। ये सज्जन एक अंग्रेज यहूदी हैं, पेशेसे अटर्नी और आचार-विचारसे हिन्दू हैं। भारतीय शिष्टमण्डलमें नियुक्त किये जानेवाले ये ही एक व्यक्ति हैं जिन्हें ट्रान्सवाल सरकार गिरफ्तार नहीं कर सकी।" एक दृष्टिसे यह कैसी मानहानि है कि आपको आचार-विचारसे हिन्दू समझा जाये। कैलेनबैक इसपर क्या कहेंगे? फिर भी, दूसरी दृष्टिसे, यह निःसन्देह प्रशंसा है। आप इसे दोनोंमें से कुछ भी न मानें। मुझे मालूम है कि श्री डैलो इसी लहजेमें लोकसभाके एक सदस्यको लिखते रहते हैं। यह पत्र लिखाते-लिखाते मैं अपना विचार बदल रहा हूँ और अब यह लेख कैलेनबैकको भेजनेके बजाय आपको भेजूँगा। आप इसे सारा ही पढ़ना चाहेंगे, और जोहानिसबर्गमें तो यह किसी काममें न आयेगा।

  1. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों के मामलेपर टिप्पणी करते हुए पत्रने गांधीजीकी चर्चा की थी और लिखा था कि 'अगर वे गैर-जिम्मेदार गिरे हुए लोगों' के हाथोंमें पड़ जाते हैं, तो इससे यही अच्छा होता कि वे दक्षिण आफ्रिकामें ही रहते...एक खास वर्ग के आन्दोलनकारी इस वक्त ब्रिटेनमें घूमते हैं और जो नहीं जानते कि वे बिना समझे-बूझे क्या-क्या प्रचार करते हैं। हम विश्वास करते हैं कि श्री गांधी उनके मार्गपर न जायेंगे और ज्यादा समझदारी दिखायेंगे।"
  2. वे बम्बईके विल्सन कॉलेजमें भी प्रोफेसर रहे। वे गोखलेके मित्र थे।